जीवन में क्या लक्ष्य होना चाहिए और कौन सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए?

150 150 admin
शंका

हमारे जीवन में क्या लक्ष्य होना चाहिए? लक्ष्य को पाते समय हमें कौन सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए?

समाधान

जीवन का लक्ष्य हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से समझता है। यथार्थ में देखा जाये जीवन का गोल (लक्ष्य) हर कोई बना सकता है। भले वह लोक और परलोक के प्रति ज्यादा रूचि रखें या न रखें। जीवन का एक स्थूल लक्ष्य कम से कम ये होना चाहिए कि ‘मैं आख़िरी समय में सन्तुष्टि से जाऊँ।’ इतना लक्ष्य आप बना लीजिए कि ‘जब मैं इस दुनियाँ से विदा लूँ तो कोई कसक के साथ न जाऊँ, तृप्त होकर जाऊँ’, ये एक स्थूल लक्ष्य है। हर व्यक्ति का गोल अलग-अलग हो सकता है लेकिन ‘मैं अपने जीवन में जो कुछ भी कर रहा हूँ, जाते समय कम से कम सन्तुष्टि की सांस लेकर के जाऊँ; मुझे ऐसा न लगे कि हाय! मैं कुछ कर न सका, मेरा जीवन यूँ निकल गया।’ ऐसी प्रवृत्ति जीवन में होना चाहिए। आदमी सोचे कि ‘किन बातों से मुझे अन्तः मिलती है? मेरे मन की भीतर से सन्तुष्टि(satisfaction) किन आधारों पर होती है?’ उसे तय करे और उसके अनुरूप अपने गोल को निश्चित करे। 

यदि आप मुझसे पूछो कि एक धार्मिक व्यक्ति के जीवन का goal (लक्ष्य) क्या होना चाहिए? तो जीवन का लक्ष्य ‘जीवन की सार्थकता’ होनी चाहिए। मनुष्य जीवन को सफल बनाना, मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। मनुष्य जीवन की सफलता और सार्थकता का आधार तुम्हारा रुपया नहीं, तुम्हारा रूतबा नहीं, तुम्हारा ये बाहरी ठाठबाट नहीं। मनुष्य जीवन की सफलता और सार्थकता का आधार व्रत-संयम को अंगीकार करके अपने जीवन को आगे बढ़ाना है।

  नीतिकारों ने पूछा- भविष्य सारम किम्-किम् व्रत धारणम च? व्रतों को अंगीकार करके निवृत्ति को पाओ। ये मनुष्य पर्याय महान दुर्लभता से प्राप्त हुई। कितने पुण्य के परिणाम स्वरूप हमने ये मनुष्य जीवन प्राप्त किया, ये बड़ा संयोग है। मनुष्य पर्याय ही नहीं मनुष्य पर्याय पाने के बाद अच्छी बुद्धि, अच्छा शरीर, स्वास्थ्य, परिवार, धन सम्पन्नता व धार्मिक रूचि ये सब अनुकूलताएँ पाने के बाद भी यदि इंसान अपने कल्याण के लिए न लगे तो उससे बड़ा अभागा और कौन होगा? किसी को यदि हीरा मिले और वह कौआ उढ़ाने में लगा रहे तो उसे हम मूर्ख शिरोमणि के अलावा और दूसरी कोई उपाधि देना नहीं चाहेंगे। मनुष्य जीवन मिला है, तो मनुष्य जीवन में इन सब को सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इस संसार से पार उतरने के लिए मनुष्य पर्याय के अलावा और कोई माध्यम नहीं है, इसलिए लक्ष्य बनाइए कि हम अपने जीवन का कल्याण कर सकें।

 यदि आप गृहस्थ हैं तो खुद से पूछिये; मैं अपने गृहस्थ जिम्मेदारियों को पूर्ण करते हुए किस भांति आगे बढूँ! जिससे मैं स्वयं के उत्तरदायित्व को भी पूरा कर सकूँ? एक गृहस्थ के लिए गृहस्थी का उत्तरदायित्व निभाना बहुत ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी स्वयं का उत्तरदायित्व है। अपने आप से पूछो कि ‘मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ या नहीं? ये बात ध्यान रखें इसको मैं ऐसा बताना चाहता हूँ कि जब आप अपने व्यवहार जगत में उतरें तो जीवन को दो भागों में बाँटे। पहली पारी में आप इस ढंग से चलें कि अच्छा स्कोर खड़ा कर लें ताकि दूसरी पारी में आपको बैट उठाने की जरूरत ही न पड़े और आप अपनी जिंदगी के मैच को जीत लें। लक्ष्य बनाएँ। 

अब रहा सवाल कि गोल को पूरा कैसे करें? मनुष्य अपने उद्देश्य को तब ही पूर्ण कर पाता है जब उद्देश्य के प्रति पूरी तरह सन्तुष्ट हो। आप राँची से यहाँ तक आये किसलिए आए? ‘महाराज जी वन्दना करेंगे तो हम भी महाराज जी के साथ वन्दना कर लेंगे।’ राँची से यहाँ तक आये तो रास्ते में बहुत सारी चीजें मिलीं, सबको अनदेखा कर दिया। ‘नहीं! मुझे शिखर जी में भी गुणायतन जाना है। मुझे महाराज जी के पास जाना है।’ ये आपने एक गोल बनाया, तब आप यहाँ तक आये और इस गोल तक तब पहुँच पाये जब आपने बाकी बातों को ‘गोल’ कर दिया। कहीं बीच में अटकते तो यहाँ तक नहीं आ पाते। बस यही उदाहरण है- जो मेरा लक्ष्य है उस लक्ष्य को अपने सामने उपस्थित रखते हुए उसके सामने, उसके प्रति मनुष्य जब समर्पित होता है। तब अपने बृहद लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है। इसलिए पहले तो अपना लक्ष्य बनाएँ और फिर उसकी पूर्ति के लिए पुरूषार्थ जगायें।

 बहुत से भाई लोगों का तो ये हाल है कि जिंदगी जी रहे हैं लेकिन जिंदगी किसलिए जी रहे हैं ये पता ही नहीं है। कोई लक्ष्य नहीं है। एक रोज मैंने पूछा कि ‘भईया! क्यों जी रहे हो?’ तो उसने कहा कि ‘इसलिए कि अभी मरे नहीं हैं।’ इसलिए मैं यही कहना चाहता हूँ कि अपना लक्ष्य बनाओ। अपने जीवन का एक गोल तो होना ही चाहिए कन्फ्यूजन नहीं। व्यक्ति कई तरफ़ के गोल बनाते हैं। कई सोचते हैं कि रुपया कमायें, कोई सोचता है कि रूतबा पायें, प्रतिष्ठा पाएँ। सब के अपने-अपने ये गोल हैं। लेकिन ये गोल बहुत उथले गोल हैं। एक ओलम्पियन का गोल होता है स्वर्ण पदक, एक बिजनेसमैन का गोल होता है कि बिजनेस में सफलता। एक प्रोफेशनल का गोल होता है कि अपनी कम्पनी को कैसे आगे बढ़ायें। ये तुम लोगों का गोल हो सकता है। लेकिन धर्मी व्यक्ति का यदि कोई गोल होगा तो वह सिर्फ जीवन का कल्याण होगा। बस इसी गोल को सामने लेकर के चलो, बढ़ो! चाहे वह श्रावक हो चाहे साधु।

Share

Leave a Reply