रेडियोलॉजिस्ट क्या करें जब लोग गर्भ में बच्चों का लिंग पूछते हैं?

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शंका

मैं प्रोफेशन से रेडीऑलॉजिस्ट डॉक्टर हूँ। कई बार सोनोग्राफी के दौरान महिलाएँ मुझसे आकर पूछती है कि ‘हमें बच्चे के लिंग के बारे में बता दीजिए कि ये लड़का है या लड़की है।’ मैं चाहता हूँ कि आप समाज को ये संदेश दें कि इस तरीके से गलत काम न करें, और रेडियोलॉजिस्ट को भी गलत काम के लिए बाध्य न करें।

समाधान

बहुत अच्छी बात है कि आप डॉक्टर हैं, फिर जैन हैं, और धर्मी हैं। इसलिए आपने यह बात पूछी। मैं जानता हूँ कि आप इसमें सावधान रहते होंगे। सबसे पहले लोगों को ये बताइए कि आज के युग में लिंग परीक्षण करना कानूनन अपराध है। इसलिए जो भी आप से ये बात बोले, तो आप बस एक ही बात कहिए कि मुझे गैर कानूनी बात करना पसंद नहीं है। अमानवीय कृत्य करने की अनुमोदना भी मुझसे न कराएं। ये घोर अमानवीय कृत्य है। लिंग परीक्षण करने के उपरांत, भ्रूण हत्या करना या कराना, अथवा करने वालों की अनुमोदना करना महान पाप है। ऐसा पाप कि एक जीते जी इंसान की हत्या का पाप लगता है। 

आपके पेट में जो बच्चा आया है, वह बच्चा है कौन? थोड़ा विचार करो, तुम्हारे अपने कलेजा का ही टुकड़ा है? उसकी हत्या कराने के लिए लोग सोचते हैं यह सोचकर कि ‘हमें जरूरत नहीं।’ मैं कहता हूँ कि जरूरत नहीं है, तो फिर बीज क्यों बोया? वहाँ सावधानी रखनी चाहिए। ये महान महान पाप है, और इसका पाप पता नहीं कितने जन्मों तक भोगना पड़ेगा। किसी इंसान के द्वारा जब किसी इंसान की हत्या होती है, तो केवल हत्या कहलाती है। जब एक माँ के द्वारा अपने पेट में पल रहे बच्चे की हत्या भी हत्या कहलाती है। ऐसे कुकृत्य से बचना चाहिए। समाज में कभी भी इस तरीके की क्रिया को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। 

डी. एण्ड सी. (Dilation & Curettage), एम. टी. पी. (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) वगैरह का जो प्रोसेस है, जब डॉक्टर बताते हैं, तब रोंगटे खड़े हो जाते है। “द साइलेंट स्क्रीन” (The Silent Screen) जैसी डॉक्यूमेंट्री फिल्मों ने जो बातें बताई हैं उस को देखकर के तो रूह कांपती है। विचार करें कि किस तरीके से उस बच्चे का कत्ल किया जाता है। ये एक कत्ल ही है, घोर हत्या है। और जो माँ-बाप ऐसा करते हैं वे माँ बाप नहीं, हत्यारे हैं! अपने पुत्र के, अपनी पुत्री के, बेटे व बेटी के। जीवन में किसी ने ऐसा कृत्य किया हो, तो जब तक वह गुरु से प्रायश्चित न ले, तब तक वो न आहार दान देने के योग्य है और न भगवान का अभिषेक करने के योग्य है। क्योंकि तुम्हारे जीवन में भी एक बहुत बड़ा सूतक लगा हुआ है। कभी ऐसी कृत्य नहीं करना। 

थोड़ा विचार करो। गोद में खेलता हुआ बच्चा, उसे थोड़ी सी भी तकलीफ़ होती है, तो वह सीधे माँ के आँचल में आता है। माँ उसे अपने आँचल में ढँकती है, और बेटा सारी दुनिया की पीड़ा से मुक्त हो जाता है। मानों वो सबसे सुरक्षित ठिकाने पर पहुँच गया हो। कहते हैं कि डी.एण्ड सी. (Dilation & Curettage) की पद्धति से उस बच्चे के टुकड़े करने होते हैं, तो बच्चा अपने आपको बचाने के लिए अपने हाथ पाँव को इधर-उधर संकुचित करता है। लेकिन क्या करे? यदि जन्म ले लिया होता तो जरूर उसे माँ की गोद में छाया मिल गयी होती। अब कौन सहारा देने वाला है? जब माँ ही खुद उसकी हत्या पर आमादा हो उठी है। सोचो कि वह तुम्हारे पेट में पलने वाला भ्रूण, साधारण भ्रूण नहीं, तुम्हारा अपना बच्चा है। तुम्हारे जी का लाल है, तुम्हारे कलेजे का टुकड़ा है। उसके टुकड़े करते समय तुम्हारा मन भयभीत नहीं होता? विचार करने की बात है। तुम्हारी गोद में जो बच्चा पलता है उसके प्रति तुम्हारे मन में कितना प्यार होता है, और कोख में पलने वाले बच्चे की हत्या? ये कैसा पाप है? ये महा विडम्बना है। 

मैंने बहुत पहले इसकी चर्चा की थी और मुझे प्रसन्नता है कि सैकड़ों लोगों ने मुझसे यहाँ आकर के प्रायश्चित लिया। मैं जानता हूँ कि जो लोग यहाँ नहीं आ पाये उन्होंने भी किसी न किसी योग्य गुरु के पास जाकर प्रायश्चित लिया होगा। आज डॉ. साहब ने इस प्रश्न को उठाया है। अभी और भी जिन लोगों ने अपने जीवन में ऐसा कुकृत्य किया हो तो उन्हें प्रायश्चित लेना चाहिए, और जो लोग अभी दाम्पत्य जीवन में बँधे है उन्हें ये संकल्प लेना चाहिए, कि मैं अपने जीवन में ऐसा कोई कुकृत्य नहीं करूँगा। 

मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक दम्पत्ति हैं। जिन्होंने इस तरह का कृत्य किया तो उनकी कोख ही छिन गई। मैं मध्यप्रदेश में रायसेन में था। बहुत पुरानी बात है। एक इंजीनियर दंपति मेरे पास आये। बड़े रोती आँखों से मुझ से उन्होंने कहा कि ‘हमारा पहला ‘मामला’ शादी के तीन महीने बाद हो गया। हम लोगों ने प्लान नहीं किया था।’ ये भी दुनिया है, आज हर कुछ प्लान से सोचती है। ‘बच्चा आ गया हम लोगों ने सोचा कि इतनी जल्दी ठीक नहीं। उस बच्चे को गिरा दिया। महाराज जी १४ साल हो गये आज मेरी पत्नी की स्थिति ऐसी हो गई कि वो बच्चा पैदा करने लायक ही नहीं बची। ये कौन सा पाप है?’ किसी को तुरंत पाप का फल भोगना पड़ता है, किसी को भावांतर में भोगना पड़ेगा। लेकिन पाप तो तुम को भोगना ही पड़ेगा। 

इसलिए ऐसे कृत्यों को बिल्कुल प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। मैं ये मानता हूँ कि एक डॉक्टर होने के नाते आप हिदायत तो देते होंगे। मैं तो कहता हूँ कि ऐसी हिदायत दो कि डर जाएँ ताकि आपके यहाँ से जाएँ तो दूसरों के यहाँ न करें। उनको एकदम वास्तविकता के हिसाब से समझाओ। उनको इस तरीके का ‘मोटिवेशन’ दो कि वो इस कुकृत्य से अपने आप को बचा सकें।

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