दुनिया से बात करने के लिए फोन की जरूरत होती है, प्रभु से बात करने के लिए मौन की जरूरत होती है। फोन पर बात करने के लिए बिल देना पड़ता है, और ईश्वर से बात करने के लिए दिल देना पड़ता है। माया को चाहने वाला बिखर जाता है और भगवान को चाहने वाला निखर जाता है। मौन में ऐसी क्या ताकत है जो हमें दृढ़ बनाती है और दुनिया से ऊपर उठाकर ईश्वर से वार्तालाप कराती है?
फोन को बंद करो, मौन हो। प्रभु से बात करने के लिए मौन की जरूरत है बिना मौन के हम प्रभु से नहीं मिल सकते। वस्तुतः प्रभु से मिलाप करने के लिए हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं। प्रभु हमारे भीतर है पर इस शोर में वह दबे हुए हैं, हम उनकी आवाज ही नहीं सुन सकते। हम उनको पहचान नहीं पाते। जब हम बाहर और भीतर के शोर को मिटाते हैं, शब्द से निशब्द की यात्रा करते हैं, तब हमें हमारे भीतर बैठे हुए प्रभु का दर्शन होता है और वह प्रभु दर्शन हमारे जीवन के परिवर्तन का आधार बनता है। इसलिए अगर हम प्रभु दर्शन करना चाहते हैं तो मौन लें। मौन से हमारी प्रवृत्तियाँ संयत होती है, आधी प्रवृत्तियाँ निरुद्ध हो जाती है, बोलने में हमारी बहुत सारी शक्ति नष्ट होती है, व्यर्थ होती है। मौन को साधना का एक बहुत बड़ा अंग माना गया है। इस तरीके से हम मौन पूर्वक अपने जीवन को आगे बढ़ाएँ, तो निश्चय अपने जीवन का उत्थान कर सकेंगे।
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