व्यापार या नौकरी – क्या चुनें?

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शंका

आजकल लोगों की मानसिकता job-oriented हो गयी है, इसके पीछे क्या कारण है और समाज के बच्चों को व्यापार की तरफ कैसे आकर्षित करें?

समाधान

मैंने पहले भी कहा है, यह गलत मानसिकता है। व्यक्ति जॉब करता है जीविका के लिए, जीविका कैसे करें? आपका जीवन है, तो जीविका चुनो। जीविका के लिए आप व्यापार करो। कैसा व्यापार करो? जीविका के लिए एक ऐसा रास्ता चुनो जिसमें अल्पतम हिंसा, न्यूनतम व्यस्तता, अधिकतम आमदनी हो, क्योंकि व्यापार कारोबार में ही तुम्हारा जीवन न लग जाए, व्यापार कारोबार के साथ तुम अपने-अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, अपने धर्म के लिए भी समय दे सको, पहले लोग इसी तरह का कारोबार करते थे। 

एक दिन मैंने किसी प्रवचन में ऐसा कहा, तो एक युवक ने बोला ‘महाराज दो-चार ऐसे धंधे का नाम और बता दो।’ मैंने कहा ‘वह नहीं बताऊँगा, किसी कंसलटेंट से बात करो, मेरा काम गाइड लाइन देने का है।’ आप लोग जॉब तलाशते हैं और जॉब में २०-२० घंटे खटते है, निचुड़ जाते है। आज से कोई १० वर्ष पहले, रांची का एक अखबार निकलता है ‘प्रभात खबर’, उस में एक शोध लेख छपा था, डॉ. कल्पना रावत ने लिखा था। कल्पना रावत के शोध के आधार पर लिखित उस लेख का टाइटल था “समृद्धि की कीमत”। उसमें लिखा था कि आज जितने भी युवक-युवती पढ़ लिखकर के जॉब में जा रहे हैं, १८-20 घंटे मेहनत करते हैं, उससे उनका स्ट्रेस काम का बोझ होने के कारण इतना बढ़ गया है कि २० साल से लेकर ४० साल के उम्र समूह के युवक-युवतियों की प्रजनन शक्ति क्षीण हो गई, मतलब सब नपुंसक होते जा रहे है। इसलिए कारपोरेट हाउसेस (corporate houses) में मेडिटेशन को अब जरुरी किया जाने लगा है।

जो दूसरे का नौकर होता है वह उसकी इच्छा से जीता है, खुद की इच्छा से नहीं जी सकता। जॉब करने का मतलब पराधीन हो जाना। गन्ने की तरह पूरा निचोड़ लेता है, हालत पस्त हो जाती है। इसलिए यह मानसिकता ठीक नहीं, आप जीविकोपार्जन के लिए काम कर रहे है और पैसा आपके जीवन के लिए आवश्यक है, इसलिए आप काम कर रहे है। तो काम कीजिए, ऐसा काम कीजिए जिसमें आपको ज़्यादा उलझना न पड़े। मैं तो कहना चाहता हूँ जिन बच्चों का व्यवसाय आधार न हो, जिनकी फाइनेंशियल पोजिशन अच्छी न हो, वो जॉब करें लेकिन जिनका व्यवसाय अच्छा हो, जिनका फाइनेंशियल बैकग्राउंड अच्छा हो वो जॉब करे नहीं, दूसरों को जॉब देने लायक बनें, हमारा धर्म यह कहता है।

इस तरह की जॉब की मानसिकता का दुष्परिणाम यह हो रहा है कि छोटे-छोटे स्थानों में रहने वाले हमारे समाज के लोग आज बिल्कुल खाली हो गए, उनके बच्चे बाहर चले गए और सालों का जमा जमाया व्यवसाय अब कोई देखने वाला नहीं। इसी जॉब ओरिएन्टेड मेंटेलिटी के कारण आज लड़कियाँ छोटी जगह में आना नहीं चाहती। यह सब चीजें ठीक नहीं है, समाज में पुनर्चेतना का जागरण होना चाहिए, जिससे एक बदलाव हो।

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