साधु का समागम प्राप्त करने के लिए किसी स्थान की समाज में सामूहिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति को क्या भावना भानी चाहिए?
“भव भागन बस जोगे बसाय” अपने पुण्य को गाढ़ा करना चाहिए।
एक प्रसंग मैं आपको सुनाता हूँ। सन् १९९१ में हम लोग गोटेगाँव में थे। वहाँ से जिस दिन विहार हुआ, एक युवक आया सतना का। हम लोगों ने आचार्यश्री से चातुर्मास के लिए निर्देश माँगा तो उन्होंने कहा कि ‘वो मुक्तागिरी में हैं, मैं बहुत दूर हूँ। तुम लोग योग्य हो, अपने लिए उचित और अनुकूल स्थान, जहाँ तुम लोगों को पसन्द हो, चातुर्मास कर लो।’ हम लोगों ने मध्यप्रदेश में एक छोटा सा स्थान है- छपारा वहाँ की समाज आग्रहवन्त थी। इसलिए ये तय किया तो उस युवक ने बड़े विश्वास के साथ कहा कि इस साल का चातुर्मास आपका सतना में ही होगा। हम अन्दर से हँस रहे थे। क्योंकि हम तो निर्णय ले चुके थे, ‘क्या करना है decide कर चुके हैं कि हमको छपारा चातुर्मास करना है।’ विहार करके हम लोग लखनादौन तक पहुँचे, छपारा से मात्र २७ किलो मीटर पहले। वहाँ की समाज बड़े उत्साह और उमंग के साथ हम लोगों को विहार करा रही थी। और वहाँ हमारे पास खबर आई कि ‘महाराज जी आप कहाँ जा रहे हैं, वहॉं तो पूर्णमति और प्रशान्तमति माताजी को आदेश है।’ वो जबलपुर में थीं। हमे कहा गया कि आचार्य महाराज जी ने उनको आदेश दिया है। हम लोग अपनी बात वहाँ तक पहुँचा नहीं पाये थे। अब तो उन्हीं का चातुर्मास होगा। आचार्यश्री से उनका आदेश संशोधित करने के लिए नहीं कह सकते थे। छपारा वालों की ऐसी हालत थी कि काटो तो खून नहीं, जैसे किसी चौक में महाराज जी आकार लौट जाएँ। बुरी हालत। ठीक उसी दिन कटनी के लोग हम से निवेदन करने आये तो हमने अपने ब्रह्मचारी जी को कहा कि ‘जाओ और आचार्य महाराज जी से निर्देश लेकर आओ अब क्या करना है?’ आचार्यश्री ने कहा कि ‘उन लोगों से कह दें कि वे कटनी या सतना देख लें।’ हम लोग कटनी व सतना के लिए आ गये। कटनी और सतना वालों में होड़ मची थी कि हमारे यहाँ चातुर्मास होगा, वो बोले कि हमारे चातुर्मास होगा। कटनी से सब कुछ ठीक था लेकिन शौच के लिए अनुकूल स्थान नहीं था और सतना वालों का ये हाल हआ कि बिल्ली के भाग से छींका टूट गया। उसी साल वहाँ की कृषि उपज मंडी वहाँ से ५ किलो मीटर दूर चली गयी। मंडी पूरी खाली। हमारे ब्रह्मचारियों ने देखा कि इतना प्रशस्त स्थान है कि पूरे संघ को वहाँ रख लिया जाये तो कोई बुराई नहीं है। हम लोग सतना के लिए चले गये। सतना में चातुर्मास हुआ। आगवानी हुई, मन्दिर में प्रवेश किये। मन्दिर के बोर्ड पर हम लोगों का उल्लेख करते हुए लिखा हुआ था कि “इस वर्ष का चातुर्मास सतना में हो इसी मनोभाव से सभी लोग णमोकार मन्त्र की एक-एक माला रोज फेरें’; और वो २ महीने पुराना नोटिस था। मेरी दृष्टि जैसे ही बोर्ड पर पड़ी मैंने कहा कि बस इसी का चमत्कार है जो हमें खींच कर ले आया है।
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