शंका
मैं जब प्रतिक्रमण और ध्यान की अवस्था में जाने का प्रयत्न करता हूँ तो पीड़ा-चिंतन नामक आर्तध्यान है बहुत बाधा डालता है। इस बाधा से बचने के लिए कैसा पुरुषार्थ करना चाहिए?
समाधान
एक बार गुरुदेव से हम लोगों ने इस बारे में पूछा, , तो उन्होंने बहुत अच्छी बात कही। उन्होंने कहा कि “जब शरीर में दर्द हो तो उस समय दर्द की अनुभूति करने की जगह यह सोचो कि असाता जा रही है और जाते-जाते अपने जाने का एहसास करा रही है। ऐसा सोचोगे तो पीड़ा चिन्तन चिन्तन की जगह विपाकविचय हो जाएगा।”
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