तीर्थयात्रा, मन्दिर आदि में वन्दना करते समय किसी श्रद्धालु का अचानक देहान्त होने की स्थिति में हम सभी श्रावक क्या कर्तव्य निभाएँ? सूतक अशुद्धि के भी होने के विकल्प वन्दना आदि करते समय श्रावक के मन में बने रहते हैं।
तीर्थराज की वन्दना करते समय कई बार ऐसा होता है। हर साल १०-१२ भाग्यशाली ऐसे होते है जो ऊपर से ऊपर चले जाते हैं।
पहली बात तो ये मानकर चलिए कि इस तीर्थक्षेत्र पर खासकर पर्वतराज की वन्दना करते समय यदि किसी का मरण होता है, तो अनुकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव होने के कारण सुमरण की श्रेणी में समझना चाहिए। ये अच्छा मरण है, अच्छे-अच्छे को जो योग न मिले वो योग मिलता है। क्षेत्र की वन्दना करते समय, भगवान के दर्शन करते समय मन्दिर में पूजन अर्चन करते समय, सामायिक करते समय यदि किसी के प्राण निकलते हैं तो ये मानकर चलिए कि ये उसके प्रबल पुण्य का योग है।
अब रहा सवाल कि पर्वत कर चढ़ रहे हैं और अचानक अटैक आ जाए तो उस समय क्या करें? मैं आपसे कहना चाहूँगा कि ऐसी घड़ी में आप वन्दना कर रहे हो और किसी भी व्यक्ति को कोई भी शारीरिक पीड़ा आ रही हो तो उस समय आप अपनी वन्दना को रोक कर उसकी यथा सम्भव वैयावृत्ति कीजिए। ये आपका धर्म है, कर्तव्य है। उसकी हालत ज्यादा गम्भीर है, तो उसको णमोकार मन्त्र सुनाएँ। उन्हें त्याग दिलाएं। आपकी वन्दना छूट जाए तो छूट जाए ये वन्दना उससे बड़ी वन्दना है, ये ध्यान में रखें।
मुनि महाराजों के लिए ऐसा कहा है कि एक मुनिराज की कहीं समाधि चल रही है और उस घड़ी आवश्यकता हो; और कोई मुनिराज तीर्थ वन्दना का विकल्प लेकर के निकले हों तो उन्हें कहा गया है कि उस तीर्थ की वन्दना का विकल्प छोड़कर इस जीवित तीर्थ की वन्दना करो। कुछ स्थलों में ऐसा कहा है कि चातुर्मास की सीमा का उल्लंघन भी करना पड़े तो वो करें। तो यदि किसी को पर्वत पर अचानक अटैक आ जाए और आप सोचो कि ‘ये तो गड़बड़ है, हम यदि यहाँ रुकेंगे तो अटक जायेंगे।’ वहाँ रूकोगे तो भले तुम अटको, न अटको पर उसको छोड़कर जाओगे तो संसार में जरूर अटक जाओगे। इसलिए उस समय तुम्हारा कर्तव्य है तुम उसे नमोकार मन्त्र सुनाओ। लेकिन सब एक साथ मत सुनाने लगना। देखो क्या उसकी व्यवस्था है; उसके अनुरूप वैसी व्यवस्था करनी चाहिए। उसके लिए जो सम्भव है वह करना चाहिए।
छुआ जाए? ‘महाराज! तो हमारी वन्दना शुद्ध नहीं रहेगी, प्राणान्त हो गया है।’ प्राणान्त होने के बाद कुछ करने की जरूरत नहीं है। लेकिन जब तक प्राण बचे हैं तब तक आप को जो करना हो करें। आप नीचे आकर दोबारा भी तो वन्दना कर सकते हैं। ये बात जरूर ध्यान में रखना चाहिए। अभी मेरा ध्यान इस और आकृष्ट कराया गया कि परसों एक ८८ वर्ष के बुजुर्ग दादाजी पर्वतराज की वन्दना करते हुए दिवंगत हुए, बहुत अच्छे परिणाम थे। मुझे लोगों ने बताया कि १-२ लोगों ने तो उनका ध्यान रखा, बाकी सारी भीड़ उनको क्रॉस करते हुए चली गई। ये अच्छी बात नहीं है। किसी के साथ भी हो सकता है। ये हमारा कर्तव्य है और इसका पालन करना ही चाहिए।
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