बच्चा अच्छा पढ़ने वाला है, पढ़कर उसने डिग्री पर डिग्री अर्जित कर ली। हमें खुशी होती थी। यह किसका पुण्य है? आज वह हमसे दूर है, जॉब के लिए विदेशों में है। हम वहाँ जाना नहीं चाहते, जाकर रहना नहीं चाहते हैं। और वह यहाँ आने में असमर्थ है, कोशिश कर रहा है। यह हमारे और उसके कौन से पाप कर्म का उदय है कि हम चाह कर भी साथ नहीं रह पा रहे हैं?
इसे मैं थोड़ा पॉजिटिवली (सकारात्मकता से) लेता हूँ! बच्चे को तुमने जैसा चाहा, पढ़ाया। बच्चे ने जहाँ चाहा, वहाँ पहुँचा। निश्चित यह तुम्हारे और बच्चे के पुण्य का फल है और बच्चा अगर आज तुमसे दूर हो गया, तो इसे अपना पाप मानने की जगह, इसे भी अपना पुण्य बना लो और अपनी राह प्रशस्त कर लो। “अब हमारे लिए कल्याण का रास्ता खुल गया, यह मेरे पुण्य का उदय है, तो दोनों का पुण्य होगा। जीवन तर जाएगा। मोह में उलझोगे, दुखी रहोगे। मोह का शमन, सुखी हो जाओगे।
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