यदि बच्चे बार-बार कहने पर भी मन्दिर न जाएँ तो क्या करें?

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शंका

यदि बच्चे बार-बार कहने पर भी मन्दिर न जाएँ, तो उसके लिए क्या उपाय किया जाए?

समाधान

बच्चे को एक बार बोलो, दो बार बोलो और बहुत बोलने के बाद भी वह न जाए, तो बोलना बंद करो। मेरे विचार से यदि किसी को कोई काम कराना है, तो किसी से एक बार-दो बार बोलने से काम हो जाता है। बार-बार बोलने से काम बिगड़ जाता है। बच्चों को बोलना छोड़ दो और भावना भाओ कि बच्चे जाएँ। 

एक माँ के दो बेटे थे। एक ने एम.बी.ए. कर रखा था, दूसरा इंजीनियरिंग कर रहा था। माँ धार्मिक थी। बच्चे पहले तो बड़े संस्कारी थे, लेकिन कॉलेज में जाने के बाद उनकी दिनचर्या बिगड़ गई। मन्दिर से दूर होने लगे, जमीकंद खाने लगे, रात्रि भोजन करने लगे। माँ को अच्छा नहीं लगता था। माँ ने एक दो-बार बोला, बच्चों ने उसे ध्यान नहीं दिया, उसे अनसुना कर दिया। माँ गम्भीर और क्षमतावान थी। उसने बच्चों को कहना बंद कर दिया। बस बच्चे कोई गलती करें खुद को दंड दें। बच्चों की माँ के प्रति बड़ी श्रद्धा थी। बच्चों को जब यह लगने लगा कि हम मन्दिर नहीं जाते हमारी माँ दुखी होती है। जान-बूझकर रात में खाते हैं, तो हमारी माँ दुखी होती है। इससे बच्चे अन्दर से प्रेरित हो गए। उन्होंने माँ का अनुकरण करना शुरू कर दिया। बच्चों का जीवन बदल गया। 

परिवर्तन के कई तरीके हैं। कई बार कुछ काम ऐसे होते हैं, जो बोल कर नहीं किए जा सकते हैं पर मौन से हो जाते हैं, तो वहाँ मौन रख लेना चाहिए और ऐसी प्रेरणा देनी चाहिए, जो मुखर प्रेरणा से भी मजबूत हो।

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