एक ही समय में टीवी पर आने वाले धार्मिक प्रोग्राम और नगर में स्थित साधु-सन्तों की चर्या में कैसे सामंजस्य बिठायें? अधिक पुण्यार्जन किस में है?
टीवी के धार्मिक कार्यक्रमों को यदि आप धार्मिक भावना से देख रहे हैं तो विशुद्धतया धर्म ध्यान कर रहे हैं। जहाँ तक साधु की सेवा-परिचर्या की बात है तो मैं कहूँगा अगर धार्मिक कार्यक्रम के निमित्त से साधु की परिचर्या बाधित हो रही है, तो पहली प्राथमिकता आप परिचर्या को दें क्योंकि हमारा धर्म हमें कहता है- देव शास्त्र गुरु की सेवा करो! आप उसमें कमी करके धार्मिक कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी दे रहे हैं तो कहीं न कहीं धर्म से विमुख हो रहे हैं, ऐसा समझना चाहिए।
सबसे अच्छा विकल्प यह है कि यदि दोनों कार्यक्रम एक दूसरे के आड़े आते हैं तो आजकल रिकॉर्डिंग मोड उपलब्ध है, प्रयोग करें। उसको भी देखो, इधर भी देखो, दोनों हाथ से लड्डू खाओ। पुण्य तो अपनी तन्मयता एकाग्रता में है, अपने कर्तव्य के पालन में है।
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