अगर हमने कोई नियम लिया है और उसके बाद करने का मन नहीं है, तो हमें डर के कारण करना चाहिए या छोड़ देना चाहिए?
अगर नियम लिया है और करने का मन नहीं है, तो डर के कारण करना भी नहीं चाहिए, छोड़ना भी नहीं चाहिए। अपने मन को तैयार करके नियम को फॉलो (ꜰᴏʟʟᴏᴡ) करना चाहिए क्योंकि नियम हमने लिया है। नियम लेने का मतलब है स्वयं के लिए स्वयं के द्वारा किया गया commitment (प्रतिबद्धता)। हम commitment (प्रतिबद्धता) शब्द को जानते है ना, commitment (प्रतिबद्धता) एक बहुत बड़ी बात होती है। हमने किसी को कुछ commitment (प्रतिबद्धता) की तो उसे फुलफिल करना चाहिए या छोड़ देना चाहिए? हमने जो अपने आप से commitment (प्रतिबद्धता) किया है, गुरु के सामने, भगवान के सामने तो उस commitment (प्रतिबद्धता) को हम तोड़ दें तो सही नहीं है। जब हमने नियम अपनी इच्छा से लिया तो उस नियम को अपने जीवन का सबसे बड़ा धन मानना चाहिए। नियम को सही ढंग से निभाओगे तो जीवन का कल्याण होगा। विपरीत परिस्थितियों में नियम को जो निभाते है वो बहुत ही ऊँचाई को पाते है।
एक कहानी सुनाता हूँ, एक सियार (लोमड़ी) था, उसने रात्रि भोजन का त्याग किया। कहीं मुनि महाराज का उपदेश सुना और छोड़ दिया। अब गर्मी का समय था, उसे जोर से प्यास लगी पर कहीं पानी नहीं था। जंगल में एक बावड़ी थी, (बावड़ी एक चौड़ा सा कुंआ जिसमें नीचे उतरने के लिए जीने होते थे) वो नीचे गया। पानी काफी नीचे था, वह नीचे गया तो अंधेरा हो गया। अंधेरा हो गया तो उसने कहा, रात हो गयी, मैं थोड़ी अब पानी पियूंगा, मेरा तो रात्रि भोजन का त्याग है। वह ऊपर आया देखा अभी तो पूरे में सनलाईट (रोशनी) है, लगता धोखा हो गया। फिर नीचे गया, काफी नीचे गया, फिर वहाँ अँधेरा हो गया। फिर कहता है, नहीं मुझे रात में नहीं लेना, ऐसे वह ३ – ४ बार गया, चढ़ा- उतरा, लेकिन नीचे जब अँधेरा हुआ तो ये सोचकर कि ऊपर दिन है मैं ले लूँ, उसने पानी नहीं पिया और बार बार चढ़ने-उतरने के क्रम में वह मर गया। सियार की पर्याय में मरा और वह जीव हितंकर नाम का राजकुमार हुआ और उसी भव में मोक्ष गया, उस पुण्य के प्रभाव से। कभी कोई नियम लो, उसे हल्के में मत लो, उन नियमों को अच्छे से निभाओ।
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