शंका
कभी-कभी ऐसी परिस्थिति आ जाती हैं कि न चाहते हुए भी हमको झूठ बोलना पड़ता है। ऐसे मे क्या करना चाहिए?
समाधान
पाप करना और पाप करना पड़े, इन दोनों में अंतर है। जो व्यक्ति बुद्धि पूर्वक पाप करता है, उसका पाप बहुत प्रगाढ़ होता है और जो व्यक्ति विवश होकर के पाप करता है, उसका पाप थोड़ा कमजोर होता है। इसलिए झूठ ही नहीं, मैं तमाम प्रकार के पापों के संदर्भ में कहना चाहता हूँ, पहली कोशिश करो कि पाप न करो, पाप को करना पड़े, बोलना भी हो या करना भी हो, तो उस घड़ी में अपने आप को कम से कम शामिल करो और बाद में अपने आप को मज़बूत बनाये रखने के लिए अपनी निन्दा करो, अपनी गर्हा करो कि- “मैंने ये गलत कार्य किया है, मुझे ये कार्य नहीं करना चाहिए। हे भगवन ! मुझे ऐसी शक्ति दो और मेरे लिए ऐसी अनुकूलता दो जिससे कि मैं पाप कार्य से बच सकूँ।”
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