क्या करें कि आत्मा का चिन्तन सदैव बना रहे?

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शंका

आपके प्रवचन में आपकी हमेशा प्रेरणा होती है कि हम आत्मा हैं शरीर नहीं। अगर देखा जाए हमारी सारी जिंदगी सुबह से शाम तक शरीर के रिलेटेड इश्यूज में चलती रहती है। हम यह परिवर्तन कैसे ला सकते हैं कि अपनी आत्मा को समझें और आत्मा को अनुभव या महसूस करें, यह अभी तक एक तरह का पहाड़ है जिसको हम पार करना चाहते हैं?

समाधान

यह सवाल कभी आचार्य पूज्यपाद से किसी ने पूछा कि हम अपनी आत्मा के विषय में बार-बार जानते हैं, चिन्तन करते हैं, एकान्त में भावना भी भाते हैं फिर भी बार-बार हमारा चिन्तन अनात्मा में क्यों चला जाता है?

सवाल पूछा कि आत्मा के बारे में जानते हुए भी, एकान्त में उसकी भावना भाने के बाद भी, बार-बार चिन्तन करने के बाद भी चित्त क्यों चला जाता, भटकता क्यों, अनात्मा में क्यों रमता है? उन्होंने कहा ‘पूर्व विभ्रमवशात-पुराने संस्कारों के कारण, भूयाभ्रान्ति विगच्छति-कहीं पानी डालते है ना, एक बार पानी बह जाता है, धार बन जाती है, दोबारा जब भी पानी गिरे तो उसी लाइन में जाता है। ये हमारे संस्कार हैं, चित्त में राग द्वेष मोह रूपी संस्कार हैं, अनादि से पड़े, देहात्म बोध का भाव अनादि से पड़ा है, तो श्रद्धान हो जाने के बाद भी वो संस्कार इतने प्रभावी होते हैं कि आचरण वैसा ही होता है। 

दो तरह के लोग हैं, एक वे जो शरीर को ही आत्मा मान रहे हैं। वे भेदविज्ञान से शून्य लोग हैं, उनकी तो कथा ही अलग है। वे तन की उत्पत्ति में अपनी उत्पत्ति और तन के विनाश में अपना विनाश मानते हैं। उनका संसार बहुत लम्बा है वह दुखी रहेंगे। दूसरे लोग वे जिन्होंने शरीर आत्मा के भेद विज्ञान को जान लिया है। कुछ संस्कार हैं राग के जिसके कारण भिन्नता को जानते हुए भी, देह और आत्मा के भिन्नता के बोध से संपन्न होने के बाद भी, अभी शारीरिक आकर्षण नहीं छूटा तो वे रागमूलक जीवन जी रहे हैं, वह पुराने संस्कारों का प्रताप है। बार-बार भावना भाकर इस संस्कार को बदलेंगे तो उनका जीवन वापस सुधरेगा। अब प्रवृत्ति में जीते हैं प्रवृत्ति का परिणाम है, उस परिणाम को हम धीरे-धीरे बदलेंगे तभी आगे बढ़ा जा सकता है। किसी में यह परिवर्तन बहुत तेजी से दिखता है और किसी में परिवर्तन धीमे-धीमे होता है। हमें अपने भीतर परिवर्तन घटित करना चाहिए। 

आपने अपने कदम आगे बढ़ाए हैं; और आगे बढ़ते जाइए, बहुत अच्छा होगा। बन्धुओं, इनके बारे में कुछ कहना चाहूँगा आप इनको देख रहे हैं, ये फ़्रांस के पास एक अलग कंट्री है मोनाको, वहाँ रहते हैं और इनका कहना है कि महाराज आपसे जुड़ने से पहले मेरी अपनी अलग जिंदगी थी। आज मेरी जीवन की धारा ही बदल गई। आज आधा घंटा मेरे पास बैठे, अपने अन्दर की ललक बताई और चर्चा-चर्चा में दो बात ऐसी बताई जिसे मैं आप सबके बीच quote करना चाहूँगा। उन्होंने मुझसे कहा ‘महाराज अब मन में विरक्ति के भाव आ गए, मैंने अपना सारा कारोबार बंद कर दिया है।’ अब ये चाहते हैं कि मुझे बस केवल निर्जरा करनी है, अभी तक मैंने बन्ध किया है यह परिणति इनके अन्दर आ गई। यह शब्द तो इन्होंने पहली बार कहा था जब मेरे पास पहली बार आए थे, टीवी में सुनने के बाद- ‘महाराज अब मैंने अपना कांसेप्ट क्लियर कर लिया आपको सुनकर, अब मुझे निर्जरा करनी है बन्ध नहीं।’ आज चर्चा में उन्होंने कहा कि ‘महाराज मैंने अपने आप को एकदम सीमित करना शुरू कर दिया है। जोड़ी कपड़े गर्मी के और जोड़ी कपड़े सर्दी के अलावा सारे कपड़े भी छोड़ दिए’, और सोच देखिए इन्होंने कहा ‘महाराज जब से मुझे चमड़े से विरक्ति हुई, मेरे पास रोल्स रॉयस कार है और दो बेंटली, मैंने उसमें बैठना बंद कर दिया, गाड़ियाँ गैरेज में खड़ी हैं, मैं उस गाड़ी पर नहीं बैठता क्योंकि इसमें लेदर लगा है’, ये सोच। मैंने उनसे कहा कि ‘उसको बदल दो’, बोले ‘ये पॉसिबल नहीं है। मैंने अपने दिमाग से निकाल दिया, उसको डिस्पोज करूँगा और मैं टैक्सी से काम चला लेता हूँ, और माध्यम से चला लेता हूँ। पहले मैं अपनी शान के लिए ये सब करता था, जब से अपनी पहचान हो गई तो ये सब छूट गया।’ मैंने इनसे कहा ‘अभी तक तुम अपनी शान के लिए करते थे, अब अपने जीवन को शान पर चढ़ा दो तुम्हारी अलग पहचान हो जाएगी।’ प्रेरणा लेनी चाहिये, इतने ऊँचे स्तर पर जीवन जीने वाले लोग अपने जीवन में जब बदलाव घटित करते हैं तो कैसे करते हैं? तुम लोग हो जो छोटी सी चीज भी छोड़ नहीं पाते। प्रेरणा लो और अपने जीवन में बदलाव घटित करो।

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