बच्चों के लिए स्कूल चुनते समय किन बातों का रखें ध्यान?

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शंका

वर्तमान में युवक-युवतियों में मैकडॉनल्ड्स से पिज़्ज़ा-बर्गर (pizza-burger) खाने का चलन बढ़ गया है। वे जानते हैं कि यहाँ वेज और नॉनवेज दोनों साथ में बनता है, फिर भी इन अभक्ष्य चीजों को खाते हैं और बच्चे तो आजकल इन्हीं चीजों को ज़्यादा पसन्द करते हैं। आजकल हर स्कूल में बच्चों को टिफ़िन शेयरिंग करके खाने के लिए कहा जाता है, तो ऐसे में अभिभावक क्या करें?

समाधान

ये एक बहुत गम्भीर बात है। आजकल स्कूली शिक्षा में हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं का सत्यानाश हो रहा है। आजकल मुख्य रूप से अंग्रेजी माध्यम और बड़े-बड़े स्कूलों में लोग अपने बच्चों को दाखिल करते हैं। लेकिन ये नहीं जानते कि इसका कु-परिणाम क्या होगा। इसका सबसे पहला कु-परिणाम तो ये होता है कि बच्चों का मन्दिर छूट जाता है। स्कूलों की टाइमिंग ऐसी होती है कि बच्चे स्कूल के लिए सुबह उठते हैं और सीधे स्कूल की तैयारी में जुट जाते हैं। बच्चों का मन्दिर छूटता है सो छूटता है, उसकी स्कूल की टिफिन की तैयारी करते-करते माँ भी लेट हो जाती है और फिर अपने श्रीमान् के ऑफिस जाने की तैयारी में जुट जाती है। तो कई माताओं का भीे मन्दिर छूट जाता है या बिना नहाए उन्हें रसोई में जाना पड़ता है, यह एक विडम्बना है। 

और एक सबसे बुरी बात, आप अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में भर्ती कराते हैं जहाँ वेज-नॉनवेज दोनों का चलन है और वहाँ नॉनवेज लेकर आने वाले बच्चे जब अपना टिफिन लेकर आते हैं, आपका बच्चा बाजू में बैठ के खाता है। तो पाँच-सात साल की उम्र में रोज-रोज नॉनवेज को देखते-देखते उसके मन की ग्लानि खत्म हो जाती है और जब ग्लानि ही खत्म हो जाएगी तो कल बड़ा होकर नॉनवेज खाने लगे, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लोग चाहते हैं हमारे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें, मैं इसके खिलाफ नहीं हूँ पर आपकी दृष्टि में अच्छे स्कूल की जो परिभाषा है, मैं उससे सहमत नहीं हूँ। अच्छा स्कूल वो नहीं जिसका स्टेटस अच्छा है, अच्छा स्कूल वो है जहाँ संस्कार अच्छे हैं। एक पहल करें, हम अपने बच्चे को उसी स्कूल में भर्ती कराएँगे जिस स्कूल में पूरी तरह शाकाहार हो। आज भी ऐसे बहुत सारे स्कूल हैं जिसमें किसी प्रकार के नॉनवेज की बात तो जाने दीजिए, जमींकन्द लेन की भी अनुमति नहीं है और बहुत धड़ल्ले से चल रहे हैं। समाज में ऐसे स्कूलों का प्रवर्तन होना चाहिए और ये एक बहुत समसामायिक बात है, इसके परिणाम बिगड़ रहे हैं। 

इसी प्रकार ऑनलाइन की चीजें- जब हमने जड़ ही कमजोर कर दी तो ऊपर की बातें तो गड़बड़ होगी ही। बचपन से ही बच्चे ने वो चीजें देखी, तो उसके लिए वेज नॉनवेज साथ में बनता है, नहीं बनता है, महत्त्वपूर्ण नहीं है। तो हमें तो पहले उनकी स्कूली शिक्षा अच्छे संस्थानों में, उसका ध्यान होना चाहिए। साथ ही अपने घर परिवार में ऐसा वातावरण बनाना चाहिए, बच्चों के दिल-दिमाग में प्रारम्भ से ये बात बैठा देनी चाहिए ताकि बच्चे किसी भी तरह से भटके नहीं। पर क्या करें, बच्चे की बात क्या करूँ, अब तो बड़े भी भटक रहे हैं, वहाँ सावधानी की जरूरत है।

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