पहले के जमाने में जब बेटी के ससुराल में झगड़ा होता था तो बेटी अपने पिता के घर तार भेजती थी, जब तक तार पहुँचता था, तब तक झगड़ा सुलझ जाता था। आज के जमाने में बेटी की ससुराल में अनबन होती है, तो वह अपने माता-पिता को फोन करती है। माता-पिता तुरन्त आते है और अपनी बेटी का साइड लेते हैं। माता-पिता को अपनी बेटी का घर कैसे बसाना चाहिए ताकि दोनों परिवार का समाज में आदर्श स्थापित हो?
बेटी को इस तरह से संस्कारित करना चाहिए कि वह जहाँ जाए, वहाँ की होकर रह जाए। अगर घर-परिवार में जाने के बाद कोई कठिनाई आ रही है, थोड़ी बहुत असुविधाएँ हैं, उनको adjust करना चाहिए और उसको tolerate करने की सीख देनी चाहिए। माँ-बाप को बेटी के मामले में ज़्यादा interfere (हस्तक्षेप) नहीं करना चाहिये। मेरे सम्पर्क में दो परिवार हैं, जिनकी दो घटनाएँ सामने आईं – एक अच्छी और एक बुरी!
एक की बेटी शादी हुई और सातवें दिन घर में कहने लगी कि ‘मुझे इस आदमी के साथ नहीं रहना है, इसका व्यवहार अच्छा नहीं है और अन्य कई तरह की शिकायत कीं।’ माँ के पास खबर आई, माँ ने पिता को बताया, माता-पिता दोनों ने बेटी से कहा- ‘बेटी! अभी तुझे गए सात दिन भी नहीं हुए। हम किसी मेहमान के घर भी जाते हैं, तो दो-चार दिन असहजता होती है। अब जो कुछ भी हो, तेरा घर वही है। हमने तुझे बहुत अच्छे से विदा कर दिया है, अब अगर वहाँ कुछ उल्टा भी है, तो तुझे अपने संस्कारों के बल पर सीधा करना है, यहाँ खबर मत करना। हम लोग तुझे अब इस विषय में बिल्कुल cooperate नहीं करेंगे। अगर वहाँ जाकर तू एडजस्ट नहीं हो पाई, तो ये हम अपने द्वारा दिए गए संस्कारों की कमी समझेंगे।’ इसके साथ-साथ उसको सम्बोधन भी दिया गया, उसको उस तरीके से मोटिवेट किया। बेटी को जब इस तरह की सीख मिली तो बेटी ने फिर अपनी सोच को बदला, धीरे-धीरे बेटी एडजस्ट करने लगी और साल भर बाद ऐसी स्थिति बनी कि बेटी अपने ससुराल की प्रशंसा करती न थके। अब सब कुछ अच्छा है, बहुत अच्छे से सेटल हो गई।
दूसरी घटना सामने आई कि शादी हुई और बेटी रोज शिकायतें करने लगी -’सास ऐसी है, ससुर ऐसा है, पति ऐसा है, यह ऐसा है, वह वैसा है’; इधर कुछ हो, उधर वो फोन करे, माँ-बेटी का डेली का कॉन्फ्रेंस चलता रहता था। यह हुआ कि २ महीने बाद बेटी घर आ गई और एक दूसरे के बीच तलाक की बात सामने आ गई। ये बहुत लेटेस्ट प्रकरण है।
तलाक कोई solution थोड़े ही है, थोडा एडजस्टमेंट करना पड़ता है। प्रेम देने से प्रेम मिलता है; सहन करने वाला समर्थ बनता है– इस उक्ति को कभी नहीं भूलना चाहिए। माँ-बाप अगर जरूरत से ज़्यादा अपने बच्चे के मामले में इंटरफेयर करेंगे तो बच्ची अपने घर में सेट नहीं हो सकेगी, वह अपसेट होगी इसलिए कभी ऐसा नहीं करना चाहिए।
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