शंका
पण्डित बनारसीदास जी, भूदरदास जी, पण्डित दौलतराम जी के समय गुरूदेव के दर्शन का अभाव रहा सो क्या कारण था?
समाधान
कोई दीक्षा लेने के लिए तैयार नहीं था। पण्डित जुगलकिशोर मुख्तार – जो सहारनपुर से हुए, जिन्होंने मेरी भावना की रचना की- ने एक गज़ल लिखी थी। इनके प्रश्न के सन्दर्भ में मैं वो गज़ल सुनाना चाहता हूँ। उन्होंने लिखा कि,
साधु के दर्शन कहीं पाता नहीं, दिल दुःखी है दर्द सहा जाता नहीं।
धर्म की चर्चा थी उसमें जो वजह, धर्म अब ढूँढे नजर आता नहीं।
कौम की किश्ती भंवर में जा फँसी, साधु तारक बिन तरा जाता नहीं।
जी में आता है कि मैं साधु बनूँ, साधु बिन साधु बना जाता नहीं।
बस! मैं यही समझता हूँ कि भूधरदास व बनारसीदास के पास जिनवाणी थी, लेकिन गुरु नहीं थे इसलिए वे आगे शुरू नहीं हो सके।
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