किसी गलत काम को मजबूरी में करना पड़े तो कर्म का बन्ध कैसा होगा?

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शंका

कई क्रियाएँ ऐसी होती हैं जिनको जानते हुए भी कि ‘ये ठीक नहीं हैं’ फिर भी करनी पड़ती हैं, तो ऐसे में कर्म बन्ध की स्थिति क्या होगी?

समाधान

बहुत सारी ऐसी क्रियाएँ हैं जो ठीक न होने के बाद भी करनी पड़ती हैं। ‘करते हैं और करनी पड़ती हैं’ इस भाषा में ही कर्म बन्ध की प्रक्रिया का आभास होता है। कोई व्यक्ति रुचि पूर्वक क्रिया करता है, तो उसका फल अलग होता है और किसी क्रिया को मज़बूरी में किया जाता है, तो उसका प्रभाव अलग होता है। तत्वार्थसूत्र में एक सूत्र आता है-

तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्सस्तद्विशेष: 

किसी भी अच्छे और बुरे क्रिया का फल केवल क्रिया से नहीं होता अपितु उस क्रिया के साथ जुड़ी हुई भावना से जुड़ता है। आप किसी भी अच्छी या बुरी क्रिया को जितनी तीव्रता, जितनी मंदता, जितनी जानकारी, जितनी अज्ञानता, जितने उत्साह और अनुत्साह, रुचि और अरुचि पूर्वक करेंगे, उससे बन्धने वाला पुण्य और पाप वैसे ही होगा। तो यदि कोई क्रिया न चाहते हुए भी करनी पड़ती है और उस समय मन अन्दर से कोसता है, मज़बूरी वश करनी पड़ती है, पाप बन्धेगा तो सही पर बहुत मंद बन्धेगा। इसलिए बुरे कार्य को करो मत और करना भी पड़े तो झक मार करके करो, मन मार करके करो, मन मसोस करके करो और अच्छे कार्य को पूरे प्राणों से करो। जीवन में सन्तुलन बना रहेगा।

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