आयु का बन्ध कब और कैसे होता है?

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शंका

आयु बन्ध कब होता है और कैसे पता चलता है कि आयु बन्ध हो गया?

समाधान

जैन धर्म के अनुसार कर्मों में से कर्म का बन्ध तो निरन्तर होता है लेकिन आयु कर्म हर समय नहीं बन्धता। अपनी वर्तमान आयु के दो तिहाई बीत जाने पर जब एक तिहाई आयु शेष रहती है, तब कोई जीव आयु बन्ध करने के योग्य होता है। 

समझने के लिए यदि किसी की आयु ८१ वर्ष की है, तो वो ५४ वे वर्ष में अपनी आयु बांधने के योग्य होगा, जिस समय उसकी आयु ५४ वर्ष की होगी तब आयु बन्ध होगा पर ये कोई जरूरी नहीं कि उसे घड़ी उसकी आयु बन्ध ही जाए। अगर उस घड़ी में उसकी आयु का बन्ध हो गया तब तो ठीक, यदि नहीं बंधी, तो उसकी बची आयु २७ वर्ष में से दो तिहाई यानी १८ वर्ष बीत जाने पर यानी ७२ वर्ष की उम्र में दूसरी बार आयु बांधने के लायक होगा। यदि उस घड़ी भी उसकी आयु कर्म का बन्ध न हो तब उसकी बची आयु में वर्ष है, नौ वर्ष में वर्ष निकाल दें अर्थात ७८ वर्ष में तीसरी बार आयु बांधने योग्य होगा। यदि उस घड़ी भी उसकी आयु का बन्ध नहीं हुआ तब उसकी आयु बची वर्ष का, दो तिहाई वर्ष निकाल दिया तो ८० वर्ष में चौथी बार आयु बांधने के योग्य होगा। अगर उस घड़ी भी नहीं बन्धी तब उसकी वर्ष की आयु बची, दो तिहाई निकाल दो, महीना निकाल दो तो ८० वर्ष माह में पांचवीं बार आयु बांधने के योग्य होगा, यह क्रम इस प्रकार चलता रहेगा। आयु कर्म के बन्ध के योग्य ऐसे आठ मौके होते हैं। 

ऐसा क्यों होता है? क्योंकि आयु कर्म के योग्य विशेष परिणाम चाहिए, भाव चाहिए, उसी में आयु बन्धती है। अगर इसमें नहीं बन्धी तो मृत्यु के कुछ क्षण पूर्व नियमत: आयु बन्धती है। 

आपने आगे पूछा कि यह कैसे पता चलेगा कि आयु बन्धी या नहीं बन्धी? हालाँकि ये दिव्य ज्ञानियों का विषय है पर शास्त्रों के आधार पर स्थूल अनुमान जरूर लगा सकते हैं। अगर आपके मन में व्रत-संयम का भाव जग रहा है, तो समझना मेरी आयु नहीं बन्धी और बन्धी भी है, तो खोटी आयु नहीं बन्धी। देवायु को छोड़कर अन्य आयु बन्ध करने वालों के मन में व्रत-संयम का भाव भी नहीं होता। 

मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो बड़ा व्यसनी था। अपने इलाके का डॉन था लेकिन धर्मी भी था। साधु-सन्तों की सेवा में आगे रहता, प्रवचनों में आगे रहता। प्रवचन का ऐसा रसिक कि समयसार की ऐसी व्याख्या करे कि आप भी मुग्ध हो जाओ। लेकिन उसकी सुबह की शुरुआत शराब से होती। मेरे सम्पर्क में था, मैंने अनेक बार उससे बोला, ‘भैया! इस दुर्बलता को दूर करो’ तो कहता था ‘महाराज अब यह तो इस पर्याय के साथ ही जाएगी।’ वो व्यक्ति छोड़ नहीं पाया, मेरे मन में एक विचार आया, कहीं इसकी आयु तो नहीं बन्ध गई। धर्म को समझ पा रहा है लेकिन जी नहीं पा रहा है। दान करने में आगे, सेवा करने में आगे, पैसा था, उदार भी था लेकिन अपने यहाँ का डॉन था। मन में आया इसकी आयु तो नहीं बन्ध गई। एक घटना ने मेरी इस धारणा को बल दे दिया। आगम में ऐसा कहा गया है कि आयु बन्धने के बाद अकाल मृत्यु नहीं होती। अगर अगले भव की आयु बन्ध जाए तो आपके ऊपर वज्र भी पटक दिया जाए तो अकाल में नहीं मरोगे, आयु पूरी करके ही मरोगे। 

उस व्यक्ति के साथ एक घटना घटी। वह गाँव में गया, वसूली के लिए, शराब के नशे में था। गाँव वालों से बाता-बाती हो गई, १२ बोर की बंदूक छाती पर अड़ा दी, इसने सोचा ये मजाक कर रहे हैं, चलाएँगे नहीं, सामने वाले ने चला दी। आप ताज्जुब करोगे, कारतूस अन्दर ही फट गई, उसका कुछ नहीं हुआ। उसके बाद उसके सिर पर फरसे का वार किया गया, सर फट गया। वहाँ से भागा, एक महिला ने उसे शरण दी, एहसान थे उसके वह उसकी साड़ी से सिर बांधे वही छुपा रहा। घंटे के बाद पुलिस आई, उसे सुरक्षित लेकर के गए, हॉस्पिटलाइज हुआ, टांके लगे, शाम को लोग मिलने के लिए गए तो अस्पताल में ताश खेल रहा था, स्वस्थ-सलामत। मुझे लगा इतनी बड़ी दुर्घटना में अकाल मरण न होना किसी न किसी कारण को उजागर करता है। हालाँकि मैं यह नहीं कह सकता कि उसने खोटी आयु ही बाँधी हो, ऐसा कहना भी उसके लिए दुःख होगा। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी संयम का भाव नहीं हो रहा है, तो यह समझ करके चलना चाहिए कि यह मेरी दुर्गति का कारण है। 

राजा श्रेणिक की अशुभ आयु का बन्ध हो गया था, नर्क आयु का। वह भगवान महावीर का ख़ास शिष्य था, उसने ६०,००० सवाल किए लेकिन एक भी व्रत अंगीकार नहीं कर सका, नरक जो जाना था। तो बस जब तक व्रत-संयम का भाव हो रहा है, तब तक समझ करके चलना चाहिए हम सलामत हैं।

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