आयुकर्म का बन्ध कब और कैसे होता है?

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शंका

आयु कर्म के बन्ध कितने होते हैं? आयु के किस भाग में पड़ते हैं? क्या अन्तिम बन्ध होता है? यदि कोई व्यक्ति सारी उम्र धर्म ध्यान करता है और उसकी सत्तर वर्ष की आयु में एक्सीडेंट से मृत्यु हो जाती है, तो क्या आखिरी बन्ध के अनुसार उसे गति मिलेगी? क्या सारी उम्र के कार्य उसके आगे नहीं आएँगे?

समाधान

आयु कर्म का बन्ध हर समय नहीं होता। एक जीवन में आठ बार ही होता है। उससे कम नहीं होता है। आयुकर्म के बन्ध के सम्बन्ध में ये बात है कि आठ बार में से किसी भी मौके पर आयु कर्म बन्ध हो सकता है। किसी को आठों बार होता है लेकिन आयु बन्धने के समय आपके जैसे परिणाम होंगे आगामी गति वैसी ही होगी। 

अब रहा सवाल आगामी बन्ध होने के बाद हमको उसका लाभ मिल पाएगा कि नहीं? पूर्ण जीवन में उसने अच्छा कार्य किया और अचानक दुर्भाग्य से किसी की मृत्यु हो गई तो पहले का पुण्य काम आएगा या नहीं? आएगा! पुण्य काम आएगा, लेकिन उस गति के अनुरूप। मैं एक उदाहरण देता हूँ। 

एक जगह है टीकमपुर छावनी। ग्वालियर और सोनागिरी के बीच में। वहाँ के गेस्टहाउस में मेरा विश्राम था। वहाँ भारत का सबसे बड़ा श्वान प्रशिक्षण केन्द्र है। मुझे लोगों ने बताया ‘महाराज! यहाँ जो कुत्ते हैं न उनकी उपाधियाँ ऐसी हैं- एसपी, आईजी और डीआईजी।’ तो मेरे साथ के लड़कों ने कहा कि ‘महाराज जी! इन कुत्तों का तो बड़ा पुण्य है?’ हम बोले “बिल्कुल पुण्य है। इन्होंने अतीत जन्म में पुण्य किया और आयु बन्ध के समय मायाचारी कर ली तो कुत्ते बनकर आईजी, डीआईजी बने। यदि वो मायाचारी से बच गया होता तो मनुष्य बनकर आईजी, डीआईजी बना होता।” तो वो पुण्य व्यर्थ नहीं जाता लेकिन पुण्य divert (परिवर्तित) हो जाता है वो तिर्यंच गति के अनुरूप ही होता है।

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