इस युग में जब मोक्ष प्राप्ति सुलभ नहीं तो फिर धर्म क्यों?
इस पंचम काल में मोक्ष पाया भी जा सकता है और नहीं भी पाया जा सकता। आपने पूछा-‘अगर नहीं पाया जा सकता है, तो मुनि बनना या धर्म करने का क्या मतलब?’ बिल्कुल ठीक! ‘और यदि पाया जा सकता है, तो हमने तो सुना है कि आज मोक्ष होता ही नहीं, तो कैसे पाएँगे? आपने कहा है “उत्तम सहनन हो तो मोक्ष मिलेगा”, वह आज होता ही नहीं।’
एक है संसार से मुक्ति, दूसरी है दोषों और दुर्बलताओं से मुक्ति! हम संसार से मुक्त तब होंगे, जब हमारे सारे कर्म कटेंगे, लेकिन अगर हम अपने कुछ दोषों को मिटा सकते हैं, कुछ कर्मों को काट सकते हैं, तो कोई नुकसान है क्या? किसी ग्राहक से आपको लाख रुपया का पेमेंट देना हो और यदि वह लाख रुपया न देकर के बीस हज़ार भी देता है, तो आप उसे सहज रूप से स्वीकारते हो कि भगा देते हो? ‘नहीं मुझे तो लाख ही चाहिए, जब तेरे पास लाख होगा तब देना, तब आना’, नहीं! जो आ जाए सो सही। यह सच है कि आज पूरी तरह से कर्मों से मुक्त होने की योग्यता हमारे अन्दर नहीं है, पर कर्मों को आंशिक रूप से झड़ाने की ताकत तो आज भी हमारे पास है। हम अपने पापों का नाश करने में समर्थ हैं, पापों का शमन करने में समर्थ हैं और आज हम धीरे-धीरे झड़ायेंगे तो कल, कर्मों को पूरी तरह निर्मूल करने में समर्थ हो जाएँगे।
इसलिए आज मोक्ष भले न हो, मोक्ष मार्ग है, यही मोक्ष मार्ग हमें मोक्ष की ओर ले जाएगा। इसलिए हमें इसको लेकर के बिल्कुल संकोच नहीं करना चाहिए और मोक्षमार्ग में आगे बढ़ना चाहिए। आज हम जो धर्म कर रहे हैं, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने के लिए कर रहे हैं, आज नहीं तो कल, मुक्ति तो इसी से मिलेगी।
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