जब भगवान हमारा अच्छा भी नहीं करते और बुरा भी नहीं करते तो हम भगवान की भक्ति क्यों करें?
ऐसा ही प्रश्न मुझसे दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर ने पूछा था कि ‘जैन धर्म में तो बाकी सब बातें समझ में आती हैं, मूर्ति पूजा को मानते हैं, ईश्वरवाद को क्यों नहीं मानते, ईश्वर के कृत्य को क्यों नहीं मानते? देखिए न! ईश्वर ने हम पर कितनी बड़ी कृपा की। हमारे पति की दोनों किडनियाँ खराब हो गईं थीं, उसने सब ठीक कर दीं।’ हमने कहा “मैडम! यदि यह बात है, तो हमें आपके ईश्वर पर संदेह है।” मैंने कहा कि “यदि आपके ईश्वर को आपके पति की किडनियाँ ठीक ही करनी थीं तो खराब क्यों की?” वह फिर बोलीं कि ‘आपके यहाँ भगवान की पूजा अर्चना क्यों करते हैं? भगवान तो पूजते नहीं?’ तो मैंने कहा कि “आप दर्पण देखती हो?” उन्होंने कहा कि ‘हाँ देखते हैं।’ मैंने पूछा कि “क्यों देखती हो?” तो उन्होंने कहा कि ‘इसलिए कि चेहरे पर कोई दाग धब्बा न रह जाए।’ “तो क्या दर्पण आपके चेहरे के दाग धब्बे को साफ कर देता है?” बोली ‘नहीं। दर्पण में चेहरा देखकर हम खुद अपने चेहरे को साफ कर लेते हैं।’ तो मैंने कहा “यही है भगवान की स्थिति! भगवान एक दर्पण है उनके सामने जाने पर हमारे दाग धब्बे दिखते हैं और हम उनको साफ कर लेते हैं।”
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