सल्लेखना कब लेनी चाहिए?

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शंका

सल्लेखना कब लेनी चाहिए?

समाधान

सल्लेखना लेने के बारे में मैंने कल भी बोला था, 

उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतिकारे।

धर्माय तनुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः।।

जिसमें कोई बचने की सम्भावना नहीं हो, ऐसा कोई प्राकृतिक प्रकोप हो जाए, दुर्भिक्ष आदि जिसमें प्राणों के ऊपर संकट आ जाए, जर्जरता हो जाए, बुढ़ापे के कारण शरीर में अत्यधिक शिथिलता आ जाए, और ऐसी कोई बीमारी जिसका कोई इलाज संभव ना हो, तब अपने धर्म की रक्षा के लिए सल्लेखना लेनी चाहिए। इन चार कारणों के अतिरिक्त अन्य किसी कारण से सल्लेखना लेने का कोई औचित्य नहीं है।

१२ वर्ष की जो सल्लेखना की विधि है, भगवती आराधना में स्पष्ट लिखा है कि “१२ वर्ष की सल्लेखना तभी लेनी चाहिए, जब योग्य निर्यापक की उपलब्धता के बारे में आशंका हो। यदि योग्य निर्यापक के उपलब्ध रहने के बाद भी कोई व्यक्ति १२ वर्ष की सल्लेखना लेता है, तो उसका मतलब उसे अपने संयम के प्रति अभिरुचि नहीं है। उसे घोर असंयम का दोष लगता है, ऐसा भगवती आराधना में लिखा है।

अब रहा सवाल इस पर प्रतिबन्ध लगाने का; यह अपने जीवन को अनेक जन्मों के लिए प्रतिबन्धित कर लेने का पाप करना है।

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