जिसका रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग होता है उसे मंजन नहीं करना चाहिए। हमारे चारों प्रकार के आहार का सोलह-अट्ठारह घण्टे से त्याग होता है, तो सुबह उठकर मंजन कर सकते हैं?
जिसका रात्रि भोजन का त्याग है वो पौ फटने के पूर्व मंजन न करे। अट्ठारह घण्टे से मत चलिए।
रात्रि भोजन का आपने त्याग किया, चारों प्रकार के आहार का, तो अब घण्टे से क्यों बंधते हो? रात्रि से बंधो! हम रात्रि में क्यों त्यागते हैं? इसलिए कि सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हो जाने से उनका संचार होता है और उनके हमारे भोजन में समाविष्ट होने की पूर्ण सम्भावना होती है। इसलिए रात्रि भोजन नहीं करते हैं तो आप पौ फटने से पूर्व कुल्ला न करें। सबसे उत्तम उपाय बताता हूँ, शाम को भोजन- पानी करने के बाद अपनी मुख शुद्धि कर लीजिए और फिर मुख की अशुद्धि नहीं हुई तो शुद्ध करने की जरूरत ही नहीं। बाद में मन्दिर जाइए और आइए, उसके बाद सारा काम कीजिए, ये सबसे अच्छा तरीका है।
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