आज कल हर इंसान दुनिया की भाग दौड़ में लगा हुआ है। शांति पाने के लिए कोई शांतिधारा करता है, तो कोई शांति विधान रचाता है। लेकिन फिर भी अक्सर किसी भी घर में शांति नहीं मिल पाती है। हर घर में अशांति ही रहती है। तो ये शांति मिलती कहाँ है और ये कैसे मिलती है?
बहुत सुन्दर प्रश्न, शांति धारा और शांति विधान सब करते हैं लेकिन सबके घर में शांति नहीं है। ये शांति कहाँ मिलेगी? ये जीवन की एक बहुत बड़ी सच्चाई है।
एक बार सवाल किया था कि लोग मर जाते हैं तो मरने के बाद शांति पाठ क्यों किया जाता है? आज भी कुछ लोग शांति पाठ करके आएँ हैं। किसी की मृत्यु हो जाए तो मृत्यु उपरान्त शांति पाठ क्यों करते हैं? हमने कहा आदमी के बाद धन-संपत्ति, मकान, घर, बंगला, गाड़ी, मोटर, परिवार, परिजन सब रहता है; एक शांति नहीं थी उस के साथ; इसलिए जाने के बाद शांति पाठ करते है। शांति पाने के लिए हमें बाहर नहीं अन्दर आना होगा। शांति हमारे मन में बसती है। अपनी सोच को बदलना होगा।
जो मनुष्य अपनी सोच को सकारात्मक बनाते हैं, वो शांति को पाते हैं। नकारात्मक सोच से बचें। मन में आध्यात्मिकता को जगाएँ। जब तक हमने अपने मन में सन्तोष जागृत नहीं होता, सकारात्मकता जागृत नहीं होती, आध्यात्मिकता जागृत नहीं होती, हम अपने समता प्रकट नहीं होती हम शांति को नहीं पा सकते। इसलिए शांति पाने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं, हमें अपने भीतर झाँकने की आवश्यकता है।
एक बड़ी पुरानी कहानी थी, आज बच्चों का दिन है। एक सेठ था, करोड़पति। मुनि-महाराज के पास पहुँचा बोला ‘हमें कुछ शांति पाने का उपदेश दो।’ महाराज जानते थे इसको उपदेश कैसे दिया जाए। तो महाराज ने कहा कि ‘ठीक है, तुझे शांति का उपदेश चाहिए तो एक काम कर, बगल में नदी बह रही है, उसमें एक मगर रहता है। उसके पास जाओ, वो बता देगा कि शांति का उपाय क्या है।’ अब महाराज मगर से शिक्षा लेने की बात करें, ‘चलो महाराज हैं, कह रहे हैं, चलते हैं।’ वो मगर के पास पहुँचा और वो मगर एकदम नदी के किनारे लेटा हुआ था। उसने कहा ‘अमुक महाराज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। ये बताओ शांति कैसे मिले?’ तो मगर ने कहा, ‘ठीक है मैं तुम्हें बता दूँगा। पर मुझे जोर से प्यास लग रही है, थोड़ा पानी पिला दो फिर बताऊँगा।’ शांति कैसे पायें। तो सेठ जी ने कहा ‘गजब की हालत है, पूरे पानी में घिरे हुए हो और कह रहे हो मुझे प्यास लग रही है, पानी पिलाओ। पानी यहीं रखा है, पी लो। पानी के लिए किसी को क्या कहना।’ तो मगर ने सेठ को संबोधा कि ‘मुझे भी हँसी आ रही है तुम्हारी इस नादानी पर कि तुम शांति को सब जगह तलाश रहे हो। अरे, शांति बाहर कहीं नहीं, तुम्हारे भीतर है।’ अपने अन्दर झाँको, अभी शांति पा लोगे।
जय जिनेंद्र जी।