विधान में कौन से नारियल चढ़ाने चाहिए?

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शंका

विधान में कौन से नारियल चढ़ाने चाहिए? कुछ स्थानों पर नारियल चढ़ाने पर लोग विरोध करते हैं।

समाधान

समाज में एक वर्ग है जिनके यहाँ एक परिपाटी है कि भगवान के सामने कच्चे फल नहीं चढ़ाते, पक्के चढ़ाते है, गीले नहीं चढ़ाते है, सूखे चढ़ाते हैं। गीला नारियल सचित्त होता है, सूखा अचित्त! इसलिए विरोध होता होगा। साधुओं को चाहिए कि जहाँ जो परिपाटी है उसी के अनुरूप कार्य करें। यदि गीले की जगह सूखे चढ़ा दें तो क्या बुराई है? 

कच्चे नारियल और पक्के नारियल में अन्तर है। पक्का नारियल परिपक्व है और कच्चा नारियल अपरिपक्व है। पक्के नारियल को तोड़ोगे तो गोला साबुत निकलेगा और कच्चे नारियल को तोड़ोगे तो वो दो भाग हो जायेगा। कच्चा नारियल टूट जाता है और पक्का नारियल अटूट होता है। कच्चे नारियल को आप हिलाओगे तो कुछ बजेगा तो केवल पानी बजेगा। पक्के नारियल को बजाओ तो पक्का बजता है, जो ये बताता है कि ऊपर का कवच ये शरीर है और भीतर का गोला ये आत्मा है। शरीर अलग है आत्मा अलग है, ये भेद विज्ञान की पुष्टि करता है। इसलिए भगवान के चरणों में चढ़ाओ तो परिपक्व को ही चढ़ाओ, अपक्व को मत चढ़ाओ। 

इन मामलों में भी ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है, जो परिपाटी हो वह ही चढ़ाओ। विवेक से चढ़ाओ! चढ़ाना मुख्य नहीं है, क्यों चढ़ा रहे हैं ये मुख्य है। इसे ध्यान में रख करके ही करो।

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