शंका
आरती और पूजन-अभिषेक में किसका महत्त्व अधिक
समाधान
पूजन तो परम आवश्यक है, और आरती भक्ति का एक अंग है। हो सके तो दोनों समय भगवान की वन्दना करनी चाहिए, ऐसे तो त्रिकाल वन्दना का विधान है। पर त्रिकाल नहीं कर सके तो कम से कम प्रात:काल तो करो ही। उत्तम है कि आप शाम को भी आएँ, लेकिन अगर हमने बन्धन में डाल दिया, तो शाम को बन्धन में भले नहीं बँधेंगे, सुबह का प्रतिबन्धित जरूर कर देंगे। यदि मैं यह कहने लगूँ कि – अगर शाम को तुमने भगवान की वन्दना-आरती नहीं की, तो तुम्हारी सुबह की पूजा का कोई फायदा नहीं। तो आरती करें या ना करें पूजा बन्द ज़रूर कर देंगे। मामला गड़बड़ा जायेगा। धर्म के कार्य को अपनी शक्ति और परिस्थिति के अनुरूप, जितना बन सके करना चाहिए और अपना समय अधिकतम धर्म-ध्यान में बिताने का प्रयास करना चाहिए।
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