शंका
हमारे धर्म का मूलभूत आधार अहिंसा है, तो माँस खाने और चमड़ा पहनने में उसके दोष और पाप में क्या कोई फर्क है?
अनुपम जैन, श्याम नगर
समाधान
माँस खाओ और चमड़ा पहनो, दोषी बराबर हो। माँस यानि एक को मार के खा लिया है और दूसरे को मार के पहन लिया, मारा की नहीं मारा। भागीदार बने की नहीं बने? तय कर लो कि आज से चमड़े की सामग्री का प्रयोग नहीं करेंगे। न चमड़े के पर्स रखेंगे, न चमड़े की बेल्ट पहनेंगे, न चमड़े के जूते- चप्पल कोई भी कुछ नहीं पहनेंगे। यह सार्थकता की बात है, आजकल तो सब चीज सिंथेटिक उपलब्ध हो गई और आप उनका प्रयोग करो। यह दया का भाव है, सस्ते मंहगे से मतलब नहीं है, एक से एक ब्रांडेड चीजें भी आ गई है। आजकल ब्रांडेड का युग है और अच्छी चीजें हैं तो आप अच्छी चीजें पहनिए। जीव हिंसा के मूल्य पर जीवन को चलाना बहुत बड़ा अनर्थ है।
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