गुरु के बिना दीक्षा सम्भव नहीं है, तो फिर तीर्थंकरों को दीक्षा किसने दी?
बिना गुरु के हमारा जीवन आगे नहीं बढ़ता हर गुरु से ही दीक्षा लेना पड़ता है। तीर्थंकर स्वयं जगतगुरु होते हैं उन्हें किसी अन्य गुरु की जरुरत नहीं होती है।
दो तरह के लोग होते हैं, एक वे जो बने बनाए रास्ते पर चलते हैं और दूसरे वे जो अपना रास्ता खुद बना कर चलते हैं। हम सब साधारण प्राणी तीर्थंकर भगवन्तों के द्वारा बनाए हुए रास्ते पर चलने वाले हैं और तीर्थंकर ऐसे महा प्रतापी महान आत्माएँ होते हैं जो अपना रास्ता खुद बना कर के चलते हैं उन्हें किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन अगर हम तीर्थंकरों के अतीत जीवन को पलट कर के देखें तो उन्हें भी किसी न किसी गुरु की शरण स्वीकार करनी पड़ती है और वह अपने पिछले अनेक जन्मों में अनेक गुरुओं का संसर्ग और समागम पाकर अपनी आत्मा की योग्यता को इतना निखार लेते हैं, उसमें इतनी वृद्धि कर लेते हैं कि तीर्थंकरत्व के जन्म में उन्हें अन्य किसी गुरु की आवश्यकता नहीं होती।
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