आहार दान के लिए उत्तम पात्र कौन हैं?

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शंका

गाँव में साधु आते हैं, हम उनका चौका लगाते हैं, हम कैसे जानें कि वे उत्तम पात्र हैं?

समाधान

तत्त्वार्थसूत्र में एक सूत्र आता है कि, “विधि-द्रव्य-दातृ-पात्र-विशेषात् तद्विशेषः” त .सू.७- ३९” जितनी उत्तम विधि, जितना उत्तम द्रव्य, जितना उत्तम दाता और जितना उत्तम पात्र मिले दान में उतना उत्तम फल मिलता है। जितना उत्तम पात्र मिलेगा, हमारा दान उतना उत्तम होगा। निश्चित रूप से आपको यदि चुनना है, तो आप उत्तम को ही चुनेंगे। सामान्य रूप से आगम के विधानानुसार मुनि को उत्तम पात्र कहा, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक को और व्रती श्रावक को मध्यम पात्र कहा और सामान्य साधर्मी मनुष्य को जघन्य पात्र की श्रेणी में रखा। अब हम को उत्तम पात्र को ही देना है, तो संघ में आचार्य महाराज हैं-उत्तम हैं, वरिष्ठ मुनि हैं-उत्तम है, तो उन्हीं को पडगाओ, बाकी को नहीं पड़गाओ क्योंकि हम को तो उत्तम को पड़गाना है, तो तुम श्रावक ही नहीं रहोगे। तो क्या करो? जो साधु मार्ग के अनुरूप अपना जीवन जीते हैं, वे सब उत्तम पात्र हैं और आपके गाँव में साधु हैं, मुनि महाराज हैं, आर्यिका हैं, ऐलक-क्षुल्लक हैं, तो भावना रखो कि हमारे यहाँ उत्तम से उत्तम पात्र आये और न आये तो, एक वृती को ही अपना उत्तम पात्र मानकर अपने जीवन को कृतार्थ करो। एक अच्छे श्रावक की यही अच्छी पहचान है। ऐसा न करो कि मुनि महाराज आ गये तो खूब भक्ति से आहार करा लें और ब्रह्मचारी आयें तो मुँह लटका कर आहार कराएँ। जो आयें उसको सत्पात्र मानकर अपने जीवन को कृतार्थ करें। 

साधु में कौन सा साधु उत्तम पात्र है? रत्नकरण्ड श्रावकाचार में समंतभद्राचार्य ने कहा है कि – 

“विषयाशावशातीतोनिरारम्भोऽपरिग्रहः।

ज्ञानध्यानतपोरत्नस्तपस्वीसप्रशस्यते।।” र.क. १०

जो संसार के विषयों से उदासीन, आरम्भ परिग्रह से रहित और ज्ञान- ध्यान में लीन हों, वो साधु है, वो सच्चा साधु उत्तम पात्र है। वह अगर दुनिया के खटकर्मो में फँसा है, तो आप अपना किनारा काट लें।

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