बाल ब्रह्मचारी मुनि महाराज और ग्रहस्थ से बने मुनि महाराज में पहले कौन मोक्ष जा सकता है?
ऐसा कुछ नहीं है। हो सकता है कि ग्रहस्थ से बनने वाले पहले मोक्ष चले जाएँ, बाल ब्रह्मचारी बाद में। लेकिन ऐसा भी कुछ प्रसंग आता है कि तीर्थंकर अटक जाते हैं और कामदेव निकल जाते हैं, ऐसा होता है।
ऐसा कोई विधान नहीं पर एक बात मैं बता रहा हूँ जो अनुभव की बात है। एक जो कोरी स्लेट होती है न उस पर उकेरे गए अक्षर साफ-सुथरे होते हैं और गुदी हुई स्लेट जो होती है उसमें अक्षर ढंग से उभरते नहीं है। तो जो बाल ब्रह्मचारी साधक होते हैं वो साधना में जिस हिसाब से रमते हैं वो बिल्कुल कोरी स्लेट होते हैं, सब अंकित हो जाता है और चालीस पचास साल तक, साठ साल तक घर में हुकूमत चलाने वाले ‘गुदी हुई स्लेट’ वाले होते हैं उनमें कुछ भी उभारना बहुत मुश्किल होता है। वो आखिरी तक अधिकार की ही भाषा बोलते हैं, समर्पण की भाषा बोल ही नहीं पाते। ये अन्तर तो अनुभव में आता है और आप लोग भी महसूस करते होंगे इसलिए जो मज़ा इधर का है वो मज़ा ऊपर का नहीं है, ये बात है।
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