शिखर जी क्षेत्र के बारे में आगम में लिखा है कि इसकी एक बार जो व्यक्ति वन्दना कर लेता है, तो वह मनुष्य कभी नरक गति का बन्ध नहीं करता है। यदि उस व्यक्ति ने वन्दना करने से पहले अपनी गति बाँध ली है, तो क्या उसे वो सब भोगना पड़ता है या उसमें कोई परिवर्तन होता है?
जिसने नरक, पशु गति की आयु का बन्ध कर लिया है, यदि वो शिखरजी जायेगा तो वन्दना नहीं कर पायेगा। पद्मपुराण में रावण का एक प्रसंग आता है, रावण सम्मेद शिखर जी आया था और उसने यहाँ “स्थण्डिल” नाम के पर्वत पर डेरा डाला था। उसने यहाँ वन्दना की योजना की होगी, तभी यहाँ त्रिलोक मण्डल नाम का एक हाथी मदोन्मत्त हो गया, जिसे वह वशीभूत करने में लग गया। उस हाथी का नाम उसने त्रिलोक मण्डल रखा था। फिर उसके दो सामन्त थे सूर्यरज और रिक्षरज। उनको इन्द्र के दो सामन्तों – यम और वरुण ने कैद कर लिया था; रावण उनसे निपटने में लग गया था। तो नतीजा ये निकाला कि शिखरजी आकर के भी वन्दना नहीं कर पाया। और करता कैसे, नरक जो जाना था।
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