स्वर्गीय व्यक्तियों के लिए जो दान दिया जाता है, क्या उस आत्मा को भी कुछ पुण्य लगता है या जो दान देता है उसे?
इस बात का जवाब दो- राख को सींचने से उसमें अंकुर होगा क्या? वह आदमी चला गया, वह कहाँ है, किस दुनिया में है? हमको पता नहीं। उसके नाम से आप दान दे रहे हो तो उसका उसको कोई पुण्य नहीं मिलेगा, आपको पुण्य मिल सकता है। अब आप सवाल कर सकते हैं कि ‘फिर किसी मृत व्यक्ति के जीवन के खास प्रसंगों के दिन हम दान आदि करें या नहीं?’ पहली बात कि सामने वाले को पुण्य मिले इस भाव से दान करने से कोई फायदा नहीं, लेकिन उस व्यक्ति को याद करते हुए, उसके आदर्शों का अनुसरण करते हुए यदि आप दान देते हैं तो कोई दोष नहीं।
आप लोग जिसको पुण्यतिथि कहते हैं मेरी दृष्टि में पुण्यतिथि है ही नहीं, वह पाप तिथि है। कोई मर गया और आप उसको पुण्यतिथि मान रहे हो यानि तुम इसी की प्रतीक्षा में थे कि ‘कब मरे!’ फिर पुण्यतिथि कैसे बोलते हो? किसी व्यक्ति के मर जाने के बाद उसकी तिथि को पुण्यतिथि नहीं कहो, पुण्य तिथि तो तब होती है जब मनुष्य कोई पुण्य का कार्य करके इस दुनिया से जाता है, कोई समाधि-सल्लेखना लेकर के इस दुनिया से विदा ले तो वह उसकी पुण्यतिथि कहला सकती है। लेकिन अपनी मौत मरने वाले या बेमौत मरने वाले की तिथि को पुण्यतिथि की जगह पापतिथि कहना चाहिए। हाँ, लेकिन उस पाप तिथि का लाभ उठाकर, पाप तिथि से प्रेरणा पाकर संसार की नश्वरता को समझ कर कोई अच्छा कार्य करते हो तो वह तिथि तुम्हारे लिए पुण्यतिथि बन जाती है।
जिस तिथि में पुण्य का कार्य करो वह तिथि पुण्यतिथि है। किससे प्रेरणा लेकर? ‘अरे! मेरे पिताजी गुजर गए, सारा यहीं छोड़कर चले गए, कुछ नहीं ले जा सके तो मैं क्या ले जाऊँगा? यह सब नि:सार है, सब देखते रह जाएँगे, सारी धन संपदा मुँह ताकते खड़ी रह जाती है जब व्यक्ति की मौत सामने आती है, बेकार है, चलो कुछ अच्छा कर लो।’ इस भाव से करो तो वह तुम्हारे जीवन के लिए परम पुण्य का कारण होगा। वह क्षण तुम्हारे लिए पावन क्षण होगा, वह तिथि तुम्हारे लिए पुण्यतिथि होगी और उसमें जो कुछ अर्जित करोगे वह तुम्हारे लिए होगा।
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