शत्रु कौन और क्या अहिंसा धर्म शत्रु के प्रति कायर बनाता है?

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शंका

शत्रु कौन है? क्या अहिंसा धर्म शत्रु के प्रति कायर बनाता है? शत्रु से कैसा व्यवहार रखना चाहिए? जब उनसे बचना हो और जब उनसे लड़ना हो तो कैसा व्यवहार करना चाहिए?

समाधान

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हमारे भीतर के कर्म ही हमारे शत्रु हैं। व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो जो आपके धर्म, आपकी संस्कृति, परिवार, कुटुम्ब के अस्तित्त्व और आपकी अस्मिता पर संकट पैदा करे वो शत्रु है और आप जैसे गृहस्थों की अहिंसा में शत्रु को सबक सिखाना ही धर्म है। आप किसी से लड़ रहे हैं, तो ये हिंसा हो जायेगी ऐसा समझना कायरता है। हमारा धर्म कायरता का पाठ नहीं पढ़ाता है।

हमारा धर्म हमें निर्भीकता का संदेश देता है। अपने धर्म, अपने कुटुम्ब, परिवार, देश, राष्ट्र के अस्तित्त्व की रक्षा के लिए आप शस्त्र उठाते हैं, तो वह हिंसा नहीं अहिंसा है क्योंकि आप हिंसा के लिए हिंसा नहीं कर रहे हैं,‌ अहिंसा के लिए हिंसा कर रहे हैं। रामचंद्र जी ने रावण पर जो अस्त्र उठाया वो विरोधी हिंसा है।

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