तीव्र कषायें वाला व्रती या मंद कषायें वाला अव्रती-कौन श्रेष्ठ?
व्रत-उपवास करने वाले की कषाएं मंद होनी चाहिए। लेकिन यदि व्रत-उपवास करने वाले की कषायें मंद नहीं हैं, तो यह नहीं समझना चाहिए कि व्रत-उपवास करने वाले से व्रत उपवास न करने वाले लोग अधिक अच्छे हैं, निश्चित रूप से उसमें कषायें मंद हैं।
दो शब्द हैं, एक है भाव और दूसरा है बर्ताव। कई बार व्यक्ति का बर्ताव अच्छा दिखता है, पर भाव अच्छा नहीं दिखता है। जैन धर्म में भाव, बर्ताव से ज़्यादा अच्छा बताया गया है। एक व्यक्ति के भाव और उसकी कषाएं देखने पर लगता है कि उसकी कषाएं तीव्र क्यों हैं? ऐसा इसलिये है कि उसके व्रत-उपवास में लोग बाधक बन रहे हैं, उसके भाव अलग हैं। उसके मन में विशुद्धि है जैसे आपके पास कोई निधि है, उसे अगर कोई आपसे छीन लेगा तो आपको गुस्सा आये बिना नहीं रहा जायेगा। उपवास करने वाला अगर परिवार में, घर में है और अगर ऐसा बात-वातावरण उसके सामने घटित हो रहा है और उसको अपने व्रत-उपवास खंडित होने का डर लग रहा है, जिसने अपने सम्पूर्ण जीवन की निधि के रूप में उसे संभाल कर रखा है और उसको वह अगर लुटती हुई दिखती है, तो स्वाभाविक रूप से उसके मन में ऐसी प्रतिक्रिया होगी ही होगी।
एक दूसरा व्यक्ति जो व्रत-उपवास नहीं रखता है और उसका व्रत-उपवास के प्रति कोई रुझान भी नहीं है, रूचि भी नहीं है या उसकी विचारधारा थोड़ी भिन्न प्रकार की है। बर्ताव इसका अच्छा है परन्तु भाव व्रत-उपवास वाले का अच्छा है, तो जिसका भाव अच्छा है वही व्यक्ति अच्छा है।
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