बड़ा कौन है?

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शंका

जब छोटे थे तो हम बड़ा होना चाहते थे और जब हम बड़े हो गए तो हम फिर से छोटा होना चाहते हैं, जीवन में सन्तुष्टि क्यों नहीं मिलती? आपसे सुना था कि ‘प्राप्त को पर्याप्त समझो तो जीवन में खुशियाँ आएँगी’, लेकिन अगर हम प्राप्त को पर्याप्त समझेंगे तो आगे बढ़ने का motivation कैसे मिलेगा?

समाधान

छोटे थे तो life में बड़ा होना चाहते थे, बड़े हो गए तो छोटा बनना चाहते हैं मैं इसके समाधान में यही कहूँगा कि हर छोटे को बड़ा बनने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन बड़ा बनने का मान नहीं करना चाहिए। 

आज कोई बड़ा छोटा बनना चाहता है तो उसे कुछ करने की ज़रूरत नहीं। अगर तुम बड़े हो, अपने आप को छोटा बनाना चाहते हो, अपने जीवन को ऐसा ढाल लो कि तुम कितने भी बड़े हो जाओ तुम्हारे सामने खड़ा होने वाला आदमी अपने आप को छोटा महसूस न करे। तुम बड़े हो जाओ, आसमान को छू लो लेकिन तुम्हारे सामने एक छोटा बच्चा भी खड़ा हो जाए तो वह अपने आप को छोटा महसूस न करे, समझ लो तुम्हारा जीवन बहुत चोखा हो गया, गहरी बात है इसको समझना। बड़ा बनने के बाद बड़ा बनने का जो मान होता है न वह मनुष्य को खोटा बना देता है। अपने अन्दर ऐसी सरलता और सुह्रदयता प्रकट कर लो तो फिर कभी कोई शिकायत नहीं होगी। भगवान से प्रार्थना करो, प्रकृति तुम्हें ऊँचा उठा रही है, तुम अपने मन को उसी रफ्तार से ऊँचा उठाओ। मन ऊँचा हो जाएगा तो फिर बड़ा-छोटा का भेद ही खत्म हो जाएगा। 

दूसरा सवाल प्राप्त को पर्याप्त मान कर बैठ जाएँगे तो आगे बढ़ने का मोटिवेशन कैसे मिलेगा? मैंने यह नहीं कहा तुम अकर्मण्य हो जाओ, प्रयास मत करो। प्रयास करो, परेशान मत हो- दूसरा सूत्र, यह नहीं सुना आपने। प्रयास करो, परेशान मत हो। आप लोग प्रयास कम करते हो, परेशान ज़्यादा होते हो। हाय-हाय, हाय-तौबा मचाने से क्या होगा? सन्तोष का मतलब अकर्मण्य होकर बैठना नहीं, उसका मतलब प्रयास करो और जो भी परिणाम आए सहज भाव से स्वीकार करो।

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