बच्चे की पहली गुरु उसकी माँ होती है तो धर्म गुरु का उस बच्चे के जीवन में क्या स्थान होना चाहिए?
बच्चे की पहली गुरु माँ होती है। माँ इसलिए गुरु है क्योंकि माँ जन्म देती है, जीवन देती है। संत कहते हैं जो जन्म दे, जीवन दे उसकी महिमा को नकारा नहीं जा सकता, उसका उच्च स्थान है।
लेकिन जन्म और जीवन से ही हमारे जीवन की सार्थकता नहीं है। जन्म और जीवन की सार्थकता तब होती है जब हम अपने जीवन को सही दिशा पर लगाएँ। जीवन को सही दिशा देने का काम सदगुरु करते हैं, जिससे जीवन में पूज्यता आये। माँ जीवन का पोषण करती है तो गुरु उस जीवन को पूज्य बना देते हैं, इसलिए गुरु का स्थान ऊँचा होता है। माँ से भी ऊँचा होता है। माँ जन्म देने वाली है और गुरु जन्म, जरा और मृत्यु से मिटाने वाले हैं, संसार से पार उतारने वाले हैं।
इसलिए दोनों में अगर तुलनात्मक रूप से पूछा जाए तो गुरु का स्थान ऊँचा है। यही कारण है कि अगर किसी माँ की संतान साधना के बल पर अपने भीतर के गुरु भाव को जगा ले, दीक्षा ले लेवे, सन्यास को अंगीकार कर ले तो उसकी माँ खुद उनकी वंदना करने को जाती है और अपने आप को कृतार्थ महसूस करती है; क्योंकि वह अब गुरु भाव को प्राप्त हो गए। मैंने तो केवल जन्म दिया है इनने जन्म को सार्थक बनाने का रास्ता दिखाया है।
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