तलाक को पहले जमाने में बहुत ही बुरा माना जाता था लेकिन आजकल की जनरेशन के लिए यह जैसे एक फैशन बन गया है। आपस में छोटी-छोटी बातों को वो लोग सहन नहीं कर पाते; इसके अलावा बड़ों का कहना-सुनना भी उनको अच्छा नहीं लगता है। बहू-बेटी जो भी होती है वह तलाक के लिए एवं दूसरी शादी के लिए जल्दी तैयार हो जाती है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है- हमारा समाज या आजकल की पढ़ाई या आजकल जो टीवी सीरियल दिखाई देते हैं? हर तीसरे सीरियल में दूसरी शादी, तीसरी शादी… यही दिखाई देता है। तो इसका अन्त कहाँ जाकर होगा?
लोग कपड़े बदलने की तरह पति-पत्नी बदलने लगे। स्थितियाँ बड़ी भयंकर हो गई हैं। छोटी-छोटी बातों में इतना बड़ा निर्णय जिसके बारे में पहले कोई सुनता था तो आश्चर्य होता था। अब तो माँ-बाप के सामने बड़ी दुविधा होती है। पहले वे सोचते हैं कि बच्चे की शादी हो जाए, दो-चार साल तक जब तक वह पूरी तरह सेटल नहीं होते तब तक उनको चैन नहीं रहती, मन में तनाव बना रहता है। आपने इसके पीछे के कारणों की बात उठाई। इसके अनेक कारण हैं- समाज भी जिम्मेदार है, आज का वातावरण भी जिम्मेदार है, आज की शिक्षा भी जिम्मेदार है और सबसे बड़ा कारण है अधिक उम्र के बाद विवाह। हमारे यहाँ विवाह के लिए कहा जाता था- कन्या का विवाह। १६- १७- १८ साल में कन्या का जब विवाह होता था तो वह नये घर में जाकर के ढल जाती थी। अब २५ वर्ष की परिपक्व युवती और युवक का विवाह होता है तो एडजस्टमेंट नहीं होता। उस समय उसका बौद्धिक विकास बहुत ज़्यादा हो चुका होता है। हर बात में egoist nature हो जाता है, एडजेस्टमेंट में। पूरा environment (वातावरण) बिगड़ा हुआ है, सब तरफ इसी तरह की सीख देने वाले लोग हैं।
पहले तो जब माँ बेटी को विदा करती थी तो सीख देती थी ‘बेटी अब तेरा वही घर है जो कुछ हो उसे सहन करना।’ अब -’बेटी चिन्ता मत करना, कुछ हो तो हम हैं।’ डेली जो फोन पर बात होती है ना, दूर बैठी बेटी से, दूर से जो डायरेक्शंस मिलता है इससे भी घर बिगड़ जाता है। मैं तो यह कहूँगा कि अगर आपने अपनी बेटी को विदा कर दिया तो अच्छे संस्कार देकर के विदा कीजिए। बहुत ज़्यादा शिक्षा और बहुत ज़्यादा उम्र में विवाह करने से भी यह परेशानियाँ बहुत होती है जब एडजस्टमेंट नहीं होता। हमारे गुरुदेव के कथनानुसार तो लड़कियों को बारहवीं कराने के बाद जब १८ साल की हो जाए, विवाह कर दो; और आगे पढ़ाई करना है, तो शादी के बाद करो। ये सबसे अच्छा रास्ता है इसके सुपरिणाम आएंगे, पहले भी ऐसा होता था। आचार्यश्री ने रामटेक में अपने प्रवचन में ये बातें कहीं हैं। खूब पढाओ-लिखाओ पर शादी के बाद! यदि ऐसा करो तो ये विकृतियाँ जो समाज में पनप रही है इससे समाज में बचा जा सकता है।
अधिक उम्र और अधिक बौद्धिक विकास इगोइस्ट बनाता है और जब मनुष्य के रिश्तों के मध्य ‘अहं’ आड़े आने लगता हैं तो रिश्ते तार-तार हो जाते हैं इससे बचना चाहिए। बेटी को विदा करो तो यह संस्कार देकर के विदा करो कि’ बेटी अब तेरा घर वही है। तेरे साथ यदि कुछ हो तो तू यहाँ फोन मत करना, अपनी कुशलता से तू वहीं कोई राह निकालना, किसी को जवाब मत देना, सब के दिल में अपना स्थान बनाने की भावना बनाना।’ उसके अन्दर ऐसी भावनात्मकता जगा देनी चाहिए ताकि वह उसी घर को अपना घर माने। मैं नहीं कहता कि ससुराल वाले लोग गलत नहीं होते, अगर उनमें कुछ गलतियाँ हैं भी, तो अपनी कुशलता से उन्हें सुधारने का उपक्रम करें।
इस तरह की स्थितियाँ ठीक हो सकती हैं। दोनों तरफ से गलतियाँ होती हैं: लड़के वालों की तरफ से, लड़के की तरफ से, लड़की की तरफ से, लड़की वालों की तरफ से। अब तो एक केस ऐसा आया कि एक व्यक्ति ने अपनी तीन बेटियों की शादी की और तीनों की तलाक करा दिया और मोटी रकम ऐंठी, हालत खराब कर दी सामने वाले पर उल्टा सीधा केस करके। मैं चाहता हूँ कि समाज इसमें मूकदर्शक न बने, जो लोग इस तरह का कुत्सित आचरण करते हैं उनका मनोबल तोड़ना चाहिए, ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए, जो किसी का जमा जमाया परिवार उजाडना चाहते हैं। जब तक समाज में इस प्रकार के जागरूकता नहीं होगी यह बदलाव नहीं होगा।
यह बड़ी विचित्र स्थिति है, विषमता आ रही है। हम लोगों का इतना तो आज नियंत्रण है कि तलाक होने के बाद इस तरह के पुनर्विवाह करने वालों से हम लोग आहार नहीं लेते। लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं क्योंकि समाज ने इसे मान्यता दे दी। किसी गम्भीर कारणवश यदि किसी के मध्य सम्बन्ध विच्छेद हो तो एक अलग बात है। लेकिन छोटी-छोटी बातों में और सामने वाले को प्रताड़ित करने के लिए, परेशान करने के लिए, पैसा ऐंठने के लिए इसे धंधा बना करके जो लोग कार्य कर रहे हैं घोर निंदनीय अपराध है, इससे समाज को बचना चाहिये।
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