जैन धर्म के अनुसार शिव कौन है?

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शंका

मेरे कुछ जैन मित्र धर्म से भटक रहे हैं। वे कहते हैं कि ‘शिव परमात्मा है, बाकी सब देव हैं। महावीर भगवान, पारसनाथ भगवान, नेमिनाथ भगवान सब देव हैं, परमात्मा नहीं हैं। और वे हमारी पूजा में आने वाले शिव, ब्रह्मा आदि शब्दों को लेकर जो तर्क करते हैं मैं उनका जवाब नहीं दे पाता हूँ, मार्ग दर्शन करें?

मनोज जैन

समाधान

उनसे कहना कि ‘जैन धर्म में किसी अनादि सिद्ध परमात्मा की मान्यताएँ ही नहीं है।’ जैन धर्म में ऐसा कोई परमात्मा नहीं है जो अनादि से परमात्मा है। जैन धर्म के अनुसार हर आत्मा परमात्मा है। आत्मा परमात्मा बन सकता है बशर्ते अपने भीतर की शक्तियों को प्रकट करे; जैसे सोने के पाषाण में सोना होता है उसको गला कर, तपा कर उसके भीतर के स्वर्ण को प्रकट किया जाता है। ऐसे ही आत्मा में अनादि से कर्म भरे हुए हैं, उन कर्मों को त्याग और तपस्या के बल से जब हम दूर कर लेते हैं तो हमारी आत्मा का शुद्ध स्वरूप निखरता है, वही परमात्मा है। चाहे ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यंत 24 तीर्थंकर हों या अन्य महान आत्माएँ जिन्हें हम भगवान के रूप में पूजते हैं, वे कभी हमारी तरह एक इंसान थे। उन्होंने अपनी साधना के बल पर अपनी आत्मा का अन्तरमंथन किया और अपने भीतर के परमात्मा तत्त्व को प्रकट किया। हर आत्मा परमात्मा बन सकती है। परमात्मा स्वरूप का नाम ही शिव है, शिव यानि कल्याण- पर ऐसा कोई अनादि शिव नहीं है। शिव हम भी बन सकते हैं। बस उनसे यह कहो ‘हमें किसी शिव से मिलना नहीं है अपने भीतर शिव को प्रकट करना है।’ वह हमारी वीतराग अवस्था का नाम है।

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