चैरिटी (दान-पुण्य) में प्राथमिकता किसे दें-संसार या समाज को?

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शंका

२० वर्ष पहले आपने ही आदेश दिया था कि “सब महिलाओं में एक जाग्रति आनी चाहिए। जैन समाज की महिलाओं का उपयोग, उनकी प्रतिभा का और उनकी शक्ति एवं क्षमता का उपयोग जैन समाज के और जैन समाज की संस्थाओं के लिए होना चाहिए।” लेकिन इस समय मैं देख रही हूँ कि हमारी जैन महिलाएँ अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग दूसरी संस्थाओं के लिए करती हैं। जब हम उनसे कुछ कहते हैं तो वे हमसे कहती हैं “हम तो चैरिटी कर रहे हैं। हम यहाँ भी तो दान दे रहे हैं, बच्चों का ही भला कर रहे हैं” तो उनको हम सही मार्गदर्शन कैसे दें?

समाधान

आपने बहुत अच्छे मुद्दे को उठाया है। मैं समझता हूँ जैन समाज में महिलायें बहुत शिक्षित और समर्थ हैं और जैन समाज की महिलायें अगर जाग्रत हो जाएं तो हमारे समाज को काफी ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती हैं। इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए क्योंकि वे शिक्षित हैं, समर्थ हैं और अपेक्षाकृत संस्कारित हैं। आवश्यकता है इन्हें सही दिशा पकड़ने की। हम देखते हैं कि समाज का तथाकथित संभ्रात वर्ग समाज की मूल धारा से जुड़ना नहीं चाहता, वह अपनी अलग पहचान बनाने में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है, इसका यह परिणाम है कि हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग समाज से कटा-कटा सा रहता है, उसे अपने धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में उतनी रुचि नहीं होती और अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए वे अनेक-अनेक प्रकार की संस्थाओं में अपने आप को जोड़ते हैं और उनके माध्यम से अपनी आत्म तुष्टि करने का प्रयास करते हैं। सच्चे अर्थों में ये चीजें ठीक नहीं हैं। आपने जिस धर्म, जिस परम्परा, जिस समाज में जन्म लिया है, आप का पहला दायित्त्व है कि उस समाज के लिए आप कुछ करें। मैं आपसे कहता हूँ संसार को आप कंट्रीब्यूशन बाद में देना, पर आपके जीवन के निर्माण में जो समाज का कंट्रीब्यूशन है उसको जीवन में कभी मत भूलना। आज तुम जो हो वह समाज के बदौलत हो, आज तुम्हारे जीवन में अनाचार नहीं, आज तुम्हारे जीवन में बुराई नहीं, आज तुम्हारे जीवन में व्यसन नहीं, आज तुम्हारे जीवन में पाखंड नहीं, वो किसके कारण? समाज के कारण, समाज ने तुम्हें वह संस्कार दिए, समाज ने तुम्हें यह व्यवस्था दी, समाज ने तुम्हें मर्यादा का पाठ पढ़ाया जिसके कारण आज तुम लायक बने हो और लोगों के बीच बसने लायक बने हो। तो ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि जिस समाज के कारण तुम्हारे जीवन का निर्माण हुआ उस समाज के उत्थान में अपना योगदान दो, उसके लिए प्रयास होना चाहिए। 

आज हाई प्रोफाइल बनने के चक्कर में लोग हमारी सामाजिक भावनाओं को दरकिनार करते हुए, सामाजिक लोगों की उपेक्षा करते हुए इधर-उधर जुड़ते हैं और वहाँ जो जुड़ते हैं और वहाँ जाकर गौरवान्वित होते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि तुम किनके साथ जुड़ रहे हो? कोई शराबी है, कोई कबाबी है, कोई व्यभिचारी है, किसके साथ आपका उठना-बैठना होता है? जिनका कोई आचार नहीं, जिनका कोई विचार नहीं, चेहरे पर चमक है पर ह्रदय में कलुषता भरी है। उन लोगों के संसर्ग और सानिध्य में रहकर के तुम पाओगे क्या? अपनी शक्ति को समाज के कल्याण में लगाओ। आज हमारे समाज में बहुत-बहुत संभावनायें हैं उनको आगे बढ़ाने की कोशिश करो। चैरिटी कहीं भी करो ठीक है लेकिन वही चैरिटी अच्छी है, जिससे हमारा चरित्र निर्मित हो। तुम अपने चैरिटी के चक्कर में अपने ही चरित्र को प्रभावित करते हो तो क्या होगा? मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ जिनके इस प्रकार की सभा और सोसायटीयों से सम्बन्ध होते हैं और अपने आचार-विचार से भी भ्रष्ट होने लगे हैं। यह आचार भ्रष्टता, विचार भ्रष्टता बहुत नुकसानदेह है। 

एक सज्जन मेरे पास आए जो एक लंबे समय तक एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था से जुड़े थे। पति- पत्नी दोनों ने रोती आँखों से कहा कि “महाराज हमने लगभग २५ साल तक उस एक संस्था से अपने आप को जोड़े रखा। उस संस्था में हम बहुत आगे तक रहे, गवर्नर जैसे पोस्ट तक रहे लेकिन महाराज हमने पाया कि समाज के बिना हमारा अपना कोई आधार नहीं होता।” व्यक्ति के जो संस्कार सुरक्षित होते हैं और व्यक्ति की जो अपनी पहचान बनती है वह सामाजिक स्तर पर बनती है क्योंकि हमें जीना अपने समाज के स्तर पर है। उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि “महाराज जी इसका सबसे बड़ा नुकसान हमारे जीवन में यह हुआ कि हम समाज से कट ऑफ रहे और हम कट ऑफ हुए, तो हमारे बच्चे भी कट ऑफ़ हो गए। उनकी दो बेटियाँ थी, दोनों बेटियों की जैन समाज से बाहर शादी हुई, माँ-बाप कुछ नहीं कर सके। उनको जब कहा गया तो उन्होंने कहा कि “आप हमारे जीवन में फैसला लेने के अधिकारी नहीं है, अपने जीवन का फैसला हम खुद करेंगे।” उन्होंने कहा कि “ये हमारी कमजोरी थी, हमने अपनी बेटियों को न सामाजिक संस्कार दिए, न सरोकार दिए, इसकी वजह केवल यह थी कि हमारा खुद का सरोकार नहीं था। हमें संस्कार हमारे माँ-बाप ने दिए जरुर थे लेकिन उनसे सरोकार नहीं रखा, हमारी संगति उल्टी रही इसलिए हमने भी उनको महत्त्व नहीं दिया, तवज्जो नहीं दिया। अब हमें समझ में आता है कि हमने कितनी भयानक भूल की है।”

बंधुओं मैं सब लोगों से कहना चाहता हूँ आप अच्छे कार्य से जुड़ें, मुझे कोई एतराज नहीं पर अपनी सामाजिक पहचान को कभी मत खोयें, सामाजिक संस्कारों को सुरक्षित रखें, सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहें तब आपके जीवन का उत्थान होगा, नहीं तो जितने भी लोग हैं जिनके इस तरह की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से सम्बन्ध होते हैं, कोई रिश्वतखोर होता हैं, कोई अन्य प्रकार का अनाचारी होता है जिनके आचार-विचार और व्यवहार का कोई भरोसा नहीं रहता, ऐसे लोगों के बीच बैठ करके आप अपने जीवन का उत्थान नहीं कर सकते। अच्छे कार्य के लिए समाज के स्तर से कार्य करें जिससे आपका भी व्यक्तिगत जीवन का उत्थान हो, समाज का निर्माण हो और धर्म की प्रभावना हो।

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