अक्सर जो लोग अनैतिक मार्ग पर चलते हैं वह आज की भौतिक दुनिया में ज़्यादा सफल हैं या कामयाब हैं; और जो नैतिक मार्ग पर चलते हैं वह पिछड़े प्रतीत होते हैं, ऐसी स्थिति में गृहस्थ को क्या पालन करना चाहिए और उसकी दुविधा कैसे दूर हो?
स्थूल दृष्टि से देखने पर ऐसा ही लगता है लेकिन आप गहराई से देखेंगे तो यह पाएंगे की अनीति के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति सच्चे अर्थों में बहुत पिछड़े होते हैं और नैतिकता की राह पर चलने वाले व्यक्ति सही अर्थों में संभले हुए लोग होते हैं। हो सकता है कोई अनीति के रास्ते पर चले तो पैसा कमा ले; हो सकता है अनीति के रास्ते पर चलकर व्यक्ति धाक जमा ले; उसके पास पैसा हो सकता है, उसके पास पावर हो सकता, उसका प्रभाव हो सकता है पर प्रसन्नता नहीं दिखेगी क्योंकि गलत रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति का मन सदैव सशंकित होता है। उसे हमेशा इस बात का भय रहता है कि कहीं मेरी पोल न खुल जाए, कहीं मैं किसी का शिकार न बन जाऊँ, मेरा प्रतिद्वंदी मुझ पर अटैक न कर दें, मेरा कोई किडनैप न कर ले, मेरे यहाँ कोई रेड न पड़ जाए, ये शंकाएँ ऐसे लोगों के मन में रहती है। लेकिन जो व्यक्ति नीति- न्याय पूर्वक अपना जीवन जीता है, दिखने में साधारण दिख सकता है, संपन्न नहीं है, ज़्यादा प्रतिष्ठा नहीं है लेकिन क्या उसकी प्रसन्नता की कोई कीमत आंक सकता है। सफलता का प्रतिमान क्या है- केवल धन-दौलत या मन की प्रसन्नता? तो जो लोग अनैतिक हैं, वे संपन्न हो सकते हैं पर प्रसन्न नहीं; और जो नैतिक हैं, वह विपन्न हो सकते हैं पर उनकी प्रसन्नता को कोई नहीं छीन सकता। तो मन की प्रसन्नता को टिकाए रखने के लिए हमें सदैव धर्म सहमत रास्ते पर चलना चाहिए।
एक बात और बताता हूँ, पैसा कमाना बहुत बड़ी चीज नहीं है, पैसा पाप के द्वार से पहले आता है धर्म के द्वार से बाद में। एक वेश्या जितनी आसानी से पैसा कमा सकती है, एक शीलवती स्त्री को पैसा कमाना उतना सरल नहीं होता। चोर-लुटेरे-डाकू जितनी आसानी से पैसा इकट्ठा कर सकते हैं, एक साहूकार इतनी सरलता से पैसा नहीं कमा सकता। पैसा खुद पाप है और पाप के रास्ते से पहले आता है, धर्म के रास्ते से पैसे को आना बहुत कठिन होता है। और दूसरी बात जो धर्म के रास्ते पर चलते हैं, उनका लक्ष्य पैसा नहीं होता, प्रसन्नता होती है। वो प्रसन्नता को पहले दर्जे पर रखते है और पैसे को दूसरे और जिनकी दृष्टि में धर्म नहीं होता, उनके लिए पैसा ही उनका परमेश्वर हो जाता है, तो किसी भी तरीके से वो पैसा कमाते हैं। और आज चूँकि हमारे सामाजिक मूल्य बदल गए है इसलिए ऐसा कहा जाने लगा है कि “सर्वे गुणा कांचनम् आश्रयन्ते“, पैसे वालों को मूल्य और महत्त्व दिया जाने लगा है, तो लोग पैसे के बदौलत अपना प्रभाव भी बढ़ा लेते हैं, प्रतिष्ठा भी दिखा देते हैं। पर बन्धुओं मैं तो इतना जानता हूँ पैसा वाला व्यक्ति दुनिया में बड़े आदमी के रूप में जाना जा सकता है लेकिन सही रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति दुनिया में भले आदमी के रूप में पहचाना जाता है। आप क्या चाहते हो, बड़ा आदमी बनना चाहते हो या भला आदमी, तय आपको करना है।
मुनि जी प्रणाम
1डाकू हत्या करता है लूट करता है कयू क्या वो भगवान को नही मानता
2 डाकू जिसकी हत्या करता है उसका कष्ट उसके परिवार को सहन पड़ता है क्या ये भी उसके कर्मो का फल है नही है तो भगवान उसे डाकू से बचाता क्योय नही ।।।