शंका
सम्मेद शिखर जी से करोड़ों मुनियों का निर्वाण हुआ है फिर भी जैन अल्पसंख्यक क्यों हैं?
समाधान
दुर्भाग्य से हैं! जब मुझसे कहा गया कि ‘जैनियों को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है। महाराज जी आप इस विषय में क्या कहेंगे?’ मैंने कहा कि “इसे अपना दुर्भाग्य समझूंगा। क्योंकि जो जैन कभी भारत में बहुसंख्यक थे अब उन्हें अल्पसंख्यक घोषित करवाना पड़ रहा है।” एक समय था जब भारत की ८५ प्रतिशत आबादी जैन थी। आज नगण्य बची है। मेरे पास जो आंकड़े हैं उसके अनुसार राजा अमोघवर्ष के काल में, नौवीं व दसवीं शताब्दी में जैनियों की संख्या २५ करोड़ थी। कुमारपाल के काल में घटकर, ग्यारवीं व बारहवीं शताब्दी में, १० करोड़ तक सिमट गई। सम्राट अकबर के काल में ४ करोड़ और अविभाजित काल में २ करोड़, वर्तमान में मात्र ५५ लाख है। ये हम लोगों के लिए बहुत चिंतनीय विषय है कि हम कम क्यों हो गये?
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