हमारा समाज हर क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में है, जैसे शिक्षा में, दान में, व्यापार में, टॅक्स देने में, सरकारी कानून के पालन करने में, परन्तु राजनीतिक क्षेत्र में बहुत पिछड़ी पंक्ति में है। हमें राजनीतिक क्षेत्र में आगे आने की जरूरत है?
इसके लिए जैनों को बहुत संगठित होने की जरुरत है। यदि जैन अच्छी तरह से संगठित हो जाएं और जैनों की राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रकट हो जाए तो मुझे नहीं लगता कि जैन राजनीतिक क्षेत्र में पिछड़ेंगे। मुझे मालूम हुआ कि जब भारत की आज़ादी की पहली संवैधानिक सभा में पच्चास से ज़्यादा जैन सांसद थे। शायद पचपन जैन सांसद थे। ये जैनियों की राजनीतिक क्षमता का उदाहरण है। आजकल लोग अपने स्वार्थों में सीमित हो गए हैं, सिमट गए हैं। समाज बुद्धिजीवी है, किन्तु बँट गई है। ये इसका ही परिणाम है। समाज अगर ध्रुवीकरण करे तो वो दिन दूर नहीं जब जैन समाज एक सशक्त राजनीतिक मंच को तैयार कर सके।
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