सिद्धों को निराकार क्यों कहते हैं?

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शंका

कहते हैं कि सिद्धों का तो कोई आकार होता नहीं है, एक जगह यह भी पढ़ा है कि सिर से सब समान होते हैं और ऊपर से सब छोटे-बड़े होते हैं। ऐसा कैसा होता है?

समाधान

‘सिद्धों का आकार नहीं होता’, यह इस अपेक्षा से यह कहा गया वो किसी इन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य नहीं है। लेकिन वे पूरी तरह निराकार नहीं होते, उनके आत्म प्रदेश, जो अन्तिम शरीर से किंचित न्यून देह के आकार के होते हैं। यानी जो हमारे नख से शीश तक आत्म प्रदेश है, आत्मा है। इसमें से शरीर का सारा भाग निकल गया, जो शेष बचा वो आत्मा। हमारे शरीरे में कुछ पोले हिस्से हैं, वो रह जाते हैं। उनको छोड़कर आत्मा के प्रदेश रहते हैं तो आत्म प्रदेश उसी आकर में बने रहते हैं। हम लोग एक सिद्ध आकृति मन्दिरों में देखते हैं, बीच में पोले, तो जो बीच का खाली स्थान है वो सिद्धों का आकार है। सिद्धों की आकृति उस प्रकार की होती है और उसी तरीके से उसको समझना चाहिए। इन्द्रिय अग्राह्य होने से ही उन्हें निराकार कहा, आकार शून्य होने से नहीं।

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