वीतरागी जिनदेव के मन्दिर इतने रागवर्धक क्यों?

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शंका

वीतरागी जिनदेव के मन्दिर इतने रागवर्धक क्यों?

समाधान

एक बार हमने गुरूदेव से पूछा कि- ‘हमारे भगवान वीतरागी है लेकिन इस वीतरागी भगवान के मंदिर (खजुराहो जैसे) मंदिरों में जिस तरह की मूर्तियों का चित्रण है, जिस तरह की पच्चीकारी की गई है, वो इतनी राग वर्धक है, ऐसा परस्पर विरोधाभास क्यों? वीतराग के मंदिर में तो सादगी होनी चाहिए; यह बाहर राग रंग क्यों?’ गुरुदेव ने जो उत्तर दिया आपके सवाल के उत्तर के रूप में मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ, उन्होंने कहा – “दुनिया जान ले कि राग हेय है और वीतराग उपादेय है। भगवान ने राग-रंग छोड़ा तब अपने भीतर गए। इसलिए बाहर राग-रंग है, भीतर वीतराग है, तो राग-रंग का आकर्षण छोड़ने के लिए भगवान के दरबार में उस वीतरागता का ध्यान रखा जाता है।

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