पंचमेरु, नंदीश्वर द्वीप में हर जिनालय में जो 108 प्रतिमाएँ विराजमान हैं, उनकी गिनती 108 ही क्यों होती है? 109 या 111 क्यों नहीं होती? और क्या वहाँ की प्रतिमाएँ यहाँ जैसी ही होती हैं ?
पंचमेरु में सभी अकृत्रिम जिनालयों में प्रतिमाएँ 108 ही होती है। 108 अपने आप में पूर्ण अंक है। एक और आठ का जोड़ 9 होता है। 9 अविनश्वरता का प्रतीक है। वहाँ की प्रतिमाएँ यहाँ जैसी नहीं होती है, वह ऐसी होती हैं जैसे साक्षात् भगवान बने हो। रत्नों की तो हम कहते हैं, वह पार्थिव है लेकिन देखने में जीवंत लगती है। वह अरिहंत और सिद्ध की प्रतिमा होती है। उन प्रतिमाओ में-जैसे अपनी भौहें काली है, तो वह काली होगी। आँख की पुतली जैसी है वैसी होगी। होठों में लालिमा होंगी। नाखूनों में जैसा रंग है वैसा होगा। और फिर भगवान के स्वरूप की तो कल्पना ही मत करो। यह मूर्ति है और वह प्रतिमूर्ति है। हम यहाँ जो पूजते हैं, भगवान की कृत्रिम मूर्ति पूजते हैं और वहाँ भगवान का साक्षात् प्रतिरूप। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह भगवान है या उनकी मूरत।
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