आज कई महिलाएँ अशुद्धि में भोजन बनाती हैं। उस भोजन को खाने से परिवार वालों को क्या दुष्परिणाम भोगने पड़ेंगे?
आपने बहुत ज्वलंत प्रश्न किया है। हमारे कुलाचार के अनुसार महिलाओं को माह में तीन दिनों तक विशेष शुद्धि रखने का विधान किया है। इसका हमारे शास्त्रों में उल्लेख है। व्रत- विधान संग्रह में इसका बहुत अच्छे तरीके से उल्लेख किया गया है और इसका पालन करना चाहिए। कुछ लोग जो आज आधुनिक विचारधारा से जुड़े हुए हैं, उनका कहना है कि “यह तो प्राकृतिक व्यवस्था है और इन सबको मानने की कोई आवश्यकता नहीं है।” यह बात ठीक नहीं। हमने बचपन से यह देखा हैं, सुना हैं, पुराने लोग भले ही विज्ञान की बातों को नहीं जानते थे, पर उनके जीवन का अपना एक विज्ञान था, और कुछ बातों के दुष्प्रभाव से अपने आप को मुक्त रखते थे।
यह जो व्यवस्था बताई गयी है इसके पीछे एक बड़ी वजह है।
पूरी सृष्टि में ऊर्जा का FLOW होता है, Positive (सकारात्मक) और Negative (नकारात्मक) ऊर्जा होती है। नकारात्मक ऊर्जा गंदगी के स्रोतों में ज्यादा होती है। स्त्रियों को प्रति माह ३ दिनों तक जो स्राव होता है; वह एक प्रकार की गंदगी का स्राव है और उस गंदगी के परिणाम स्वरूप बहुत सारी नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। उस नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह के कारण ही पापड़ लाल होते हैं, तुलसी जल जाती है, यह प्रभाव उसी का है। तो उस नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कम से कम हो, इसलिए एक व्यवस्था बनाई गयी कि रसोई आदि को न छुएँ, बिस्तर आदि को न छुएँ; अगर छुएँ तो केवल पॉलिथीन, रेशमी कपड़ों को छुएँ या रेक्सीन (rexine) वगैरह को छुएँ, जो bad conductor है उनको छुएँ, ताकि आपकी जो नकारात्मक ऊर्जा वह है, एक दूसरे के साथ ना जुड़े। उसके पीछे की यह धारणा रही, भावना रही।
जिसके यहाँ इस कुलाचार का पालन नहीं होता, उसके घर की रिद्धि सिद्धियाँ नष्ट हो जाती हैं। तंत्र साधना में ऐसा कहा जाता है, कि किसी भी तांत्रिक की पीठ को अगर अशुद्ध कर दो तो उसकी सारी सिद्धियाँ खत्म हो जाती हैं। मल मूत्र आ जाने से उसकी पीठ अशुद्ध हो जाती है, उसे फिर से शुद्धि करनी पड़ती है। तो जिस घर में अगर इन दिनों में शुद्धि का पालन नहीं होता, वहाँ की रिद्धि सिद्धि समाप्त समझ लेना चाहिए। और रिद्धि सिद्धि समाप्त तो घर में नकारात्मकता बढ़ेगी, अनेक प्रकार की आपत्ति, विपत्ति, परेशानियाँ आएँगी।
मैंने इसके बारे में पहले भी चर्चा की है, पर यह एक ऐसी चर्चा है जिसे कई बार करना चाहिए ताकि श्रावकों का और ख़ासकर के नई पीढ़ी के युवक-युवतियों का प्रमाद दूर हो। एक डॉक्टर मेरे संपर्क में थे, उनकी माँ उन्हें मेरे पास ले कर के आयी, “महाराज जी, डॉक्टर को आशीर्वाद दो, इसे कोई दवाई नहीं लग रही है। बड़ी तबीयत खराब है, कुछ भी खाता है तो उल्टी हो जाती है। सारी जाँच करा ली, कुछ नहीं निकले।” मैंने डॉक्टर से पूछा, “क्या बात है, कितने दिन से तुम्हें यह परेशानी है?” बोले, “महाराज जी, पिछले तीन वर्षों से परेशानी है।” पूछा, “तुम अपने नए बंगले में कितने दिनों से गये हो।” बोले, “महाराज, तीन वर्ष हो गए। पहले माँ के घर में रहता था, पुराने घर में रहता था, अभी नए बंगले में गया।” कभी-कभी किसी जीव के निमित्त से हमें कुछ इनट्यूशन(intution) हो जाता है। तुरंत मेरे मन में आया, मैंने पूछा, उसकी धर्मपत्नी सामने थी, “यह बताओ तुम आपने घर में मासिक के दिनों में रसोई में प्रवेश करती हों?” बोली, “हाँ, महाराज करती हूँ।” डॉक्टर बीच में बोले, “महाराज, हम यह दकियानूसी की बातों पर विश्वास नहीं करते। यह तो नेचुरल चीज़ है महाराज, ओवरी खुल जाती है, तो गिरेगा।” हमने कहा, “डॉक्टर, यह सायंटिफिक ( Scientific) है, अपना साइंस एक तरफ रख। तेरी बीमारी की जड़; हो ना हो यही है!” वह एकदम सकते में आ गया, “महाराज, यह क्या बोल रहे हैं?” डॉक्टर था, पर श्रद्धालु था और जुड़ा हुआ था इसीलिए मैंने इतने अधिकार पूर्वक बोला, unknown होता तो शायद मैं बोलता भी नहीं। “महाराज, कोई उपाय बताइए”। मैंने कहा, “एक ही उपाय है, आज घर की शुद्धि करने की व्यवस्था करो। कल जाओ, पूरे घर की शुद्धि करो, रसोई घर की सारी सामग्री अलग करो और पूरे घर की शुद्धि कराओ।” एक विद्वान थे, उनके माध्यम से पूरे घर की जो शुद्धि होती है, प्रतिष्ठाचार्य जो विधान आदि के समय में करते हैं, वह पूरी शुद्धि हुई। सारी सामग्री अलग हुई, फिर उन्होंने चौका भी लगाया, आहार भी हुए और आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि पन्द्रहवे दिन से उल्टी बंद हो गई। २००५ से लेकर आज तक उस व्यक्ति को उल्टी नहीं हुई यह है, यह है इसका चमत्कार!
एक महिला ने मुझसे कहा था, “महाराज मैंने चौथे दिन में तुलसी के चौरे को पानी दिया, तुलसी जल गई।” यह रोज का अनुभव है। तो आप क्या कर रहे हैं? रिद्धि सिद्धि ख़त्म हो गयी, इसीलिए शुद्धि का पालन करो। जो हमारी कुल परंपरागत व्यवस्था थी उसके अनुरूप करना चाहिए।
मैं सब नवयुवक और नवयुवतिओं से कहना चाहता हूँ, आज के आधुनिकतावादी लोगों से भी मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह आपके कुलाचार की रीढ़ है, इसे खत्म मत करें। जिस घर में कुलाचार का पालन होता है, वहाँ कभी दुराचार नहीं पनपता और जिनके यहाँ कुलाचार नहीं पलता, उस घर में दुराचार होता रहता है। इसलिए अपने आपको बचाइए।
“महाराज, अब पति पत्नी दो ही रहते हैं। कैसे काम करें?” कोई चिंता नहीं ३ दिन चौके की ड्यूटी पति संभाल लें। क्या बुराई है? खाना बनाना छोटा काम है क्या? और हकीकत में देखा जाए तो आदमी जितना अच्छा खाना बनाता है औरत बना ही नहीं सकती। जितने बड़े फाइव स्टार होटल हैं, उनके शेफ कौन है?
मैंने एक लेख पढ़ा था। उसमे लिखा “जो दंपत्ति चौके में मिलकर काम करते हैं, उनके दांपत्य जीवन में मधुरता दो सौ परसेंट अधिक होती है।” तो ३ दिन बनाके खिलाओ, उसमें क्या बुराई है? तीन दिन चौके में पूरा अपना राज्य! बनाओ खाना, खिलाओ। और नहीं है, तो रुखा सुखा खाकर काम करो। हम तो बोलते हैं, सत्तू पी के रह जाना, लेकिन अपनी घरवाली को ३ दिन रसोई में मत भेजना। यह एक व्यवस्था है, और रसोई में ही नहीं भेजना पर अन्य की भी शुद्धि बिस्तर आदि की शुद्धि, जो आपके माँ-बाप के पीढ़ीओं से संस्कार चले आ रहे हैं उनको कभी खोना नहीं चाहिए।
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