तीर्थ क्षेत्र पर बोली क्यों?

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शंका

हम लोग तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं तो कुछ क्षेत्रों पर ऐसे नियम हैं कि बोली से ही अभिषेक होगा। तीर्थ क्षेत्र पर बोली क्यों?

समाधान

क्षेत्र की व्यवस्था कैसे होगी? क्षेत्र की व्यवस्था के लिए आप बिना बोली के दान देते नहीं हो। इसलिए बोलियों की व्यवस्था करानी पड़ती है। ये जो जैन समाज है, ये बनिया समाज है। बनियों के बारे में बुन्देलखण्ड में एक कहावत है ‘अमिया निबुआ बानिया, गल मसके रस देय। जब तक उसको मसको नहीं तब तक उसमें रस नहीं निकलता है। जो आदमी सीधे हजार देता है, तो ऐसे में १० हजार दे देता है। 

क्षेत्रों में आवश्यकताएँ होती हैं। किसी भी क्षेत्र में प्रथम अभिषेक के लिए बोली हो सकती है, शांतिधारा के लिए बोली हो सकती है। ऐसा तो नहीं है कि बाकी लोगों को अवसर ही नहीं मिलता है। ऐसा आपका एकाध जगह का अनुभव हो सकता है, हर जगह ऐसा नहीं है। पूरे देश में फैले समाज में ऐसे ही चलता है। बोली में प्रारम्भ में एक-दो पात्रों को ऐसा मौका दिया जाता है फिर बाकी तो सब करते ही हैं, अवसर सब को मिलता है। क्षेत्रों के रख-रखाव में बहुत पैसा लगता है और यही मद है जिससे राशि प्राप्त हो सकती है। कई तीर्थ क्षेत्रों में हमने देखा कि उनका सालाना बजट का बुरा हाल है, वो कहते हैं कि साल में जितना खर्च होता है उतनी आमदनी नहीं है। साल भर तो यात्री रहता नहीं है, सीजन पर ही यात्री रहते हैं उस सीजन की earning (कमाई) से पूरे साल का खर्च निकालना पड़ता है। कई-कई कठिनाइओं और कमेटियों के लोग मुझसे बोलते हैं कि ‘महाराज! यदि थोड़ा सा निर्माण कार्य चालू कर दें तो तनख्वाह चुकाना भारी पड़ जाता है। बिना निर्माण कार्य के भी ऑफ-सीजन में पैसा देना मुश्किल हो जाता है। इसलिए ये कहना – ‘मन्दिरो में या क्षेत्रों में बोली को प्रतिबंधित कर दें’- शायद एकाकी दृष्टिकोण का प्रतीक होगा। वो बोलियाँ एक व्यवस्था है, उसके अनुरूप होना चाहिए। 

मैं तो कहता हूँ कि आप जो भी क्षेत्रों में जाएँ अपनी शक्ति के अनुरूप अपने ऊपर कम खर्चा करें क्षेत्र पर ज़्यादा खर्चा करें। आप अपने खाने, पीने, रहने में कितना देते हो और क्षेत्र पर दान कितना देकर जाते हो? तुम अपना कैलकुलेशन कर लेना। प्रति व्यक्ति एक यात्री सम्मेद शिखर जैसे क्षेत्र पर आता है अगर उसका हजार रुपये दिन का खर्चा होता है, तो क्षेत्र में औसतन १०० रुपये दान का भी नहीं जाता है। इतने आदमी आते हैं पर क्षेत्र का विकास कैसे होगा? 

दान देने से ही दुर्गति नष्ट होती है। और लोगों को भी अवसर मिलना चाहिए और वो अनुमोदना करके भी पुण्य कमा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि जो पहला अभिषेक करेगा उसको मोक्ष मिलेगा और आखिरी अभिषेक वाला पीछे रह जायेगा। आखरी में भाव सहित अभिषेक करने वाला भी हो सकता है कि पहले अभिषेक वाले से भी पहला स्थान प्राप्त कर सके। इसलिए तुम युवा हो और युवाओं में इन सब बातों को देखकर एक विद्रोह का भाव होता है, लेकिन वस्तुतः स्थिति से सही तरीके से अवगत होने के बाद ऐसी धारणाएँ समाप्त होंगी। एक सर्वे करो देश भर के तीर्थ क्षेत्रों में कि वहाँ की सालाना आमदनी कितनी है और खर्चा कितना है और किन मदों से आता है, तो आपको पता लगेगा कि वस्तुतः स्थिति क्या है और हम लोग कितने पीछे हैं।

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