जब तीर्थंकर भगवान को बचपन से ज्ञात होता है कि हम तीर्थंकर हैं, तो वो संसार के झंझटों में पड़ कर विवाह आदि क्यों कर लेते हैं?
ये भी एक नियोग होता है। मेरे विचार से तीर्थंकरों का जीवन परिपूर्ण जीवन होता है और वे हमें कर्म और धर्म दोनों की शिक्षा देते हैं। तीर्थंकरों के जीवन का आदर्श बहुत ऊँचा होता है। वे जब गृहस्थी में रहते हैं तो हमारे लिए एक आदर्श छोड़ते हैं कि गृहस्थी को जीना है, तो कैसे जिएँ? सबके बीच रह करके भी सबसे अलिप्त होकर जियो। जब वे सन्यास का मार्ग अंगीकार करते हैं, साधु जीवन अंगीकार करते हैं तो यह बताते हैं कि साधना करना है, तो अपने आप में केंद्रित होकर करो। अगर तीर्थंकर भगवान ने गृहस्थी का आलम्बन नहीं लिया होता तो हम आज जो लोग हैं वे अपने गृहस्थ जीवन को ठीक तरीके से जीने की कला नहीं सीख पाते, तो यह एक नियोग है उसके कारण ऐसा होता है।
Leave a Reply