जैन तीर्थंकर को क्यों पूजते हैं?
यदि यह जान लोगे कि तीर्थंकर को क्यों पूजते हैं, तब सब अपने आप स्पष्ट हो जाएगा।
हम तीर्थंकर को पूजते हैं- वीतरागता को प्राप्त करने की भावना से, मन की आकुलता को शान्त करने की भावना से, अपनी अशांति को मिटाने की भावना से! हमारे अन्दर की आकुलता और अशांति का मूल कारण हमारे भीतर का राग-द्वेष और मोह है। उस राग-द्वेष मोह के शमन के लिए, उस राग-द्वेष-मोह के शमन की प्रेरणा पाने के लिए, हम तीर्थंकर भगवंतों के चरणों में अपनी पूजा-वन्दना करते हैं। उनसे हमें प्रेरणा मिलती है। वे वीतरागी हैं तो वीतराग की प्रेरणा पाने के लिए हम वीतरागी के चरणों में आते हैं। वीतराग की प्रेरणा वही दे सकता है जो स्वयं वीतरागी है। तो जो वीतरागी है वही पूज्य है, प्रणम्य है और इस वीतरागी के अलावा संसार में जो कोई भी है उनको हम दूर से ही प्रणाम करते हैं।
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