धार्मिक कार्यों में अन्तराय क्यों आते हैं?

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शंका

व्यक्ति के कौन से पाप कर्म के उदय धार्मिक क्रियाओं में अन्तराय कारण बनता है और उसके निवारण के लिए क्या करना चाहिए, कृपया समाधान करें?

समाधान

धार्मिक क्रियाओं में अन्तराय अशुभ कर्म का उदय है, इसमें अन्तराय कर्म तो है ही अन्य भी अशुभ कर्मों को ले सकते हैं। विशेषत: किसी एक कर्म विशेष का उल्लेख इस विषय में नहीं दिखा लेकिन अन्तराय कर्म इसे मुख्य रूप से कहा गया। इसके निवारण का एक ही उपाय है – अन्यों की अनुमोदना। 

मैं अपने अनुभव के आधार पर ही कहता हूँ कि जो व्यक्ति दूसरों के धार्मिक कार्यों में बाधा डालते हैं उन्हें तीव्र अन्तराय कर्म का बन्ध होता है, वे दरिद्रता भी भोगते हैं और धार्मिक क्रियाओं में बाधा भी महसूस करते हैं। मेरे सम्पर्क में एक व्यक्ति हैं, अपने परिवार में कोई भी धार्मिक काम हो तो बहुत टोका-टाकी किया करता था, सबको रोक-टोक लगाता था, खुद धार्मिक था लेकिन दूसरों को धार्मिक क्रियाओं को करने में बहुत रोक-टोक, बहुत सारे दिशानिर्देश रहते थे। उस आदमी के जीवन की आखिरी की दशा बहुत खराब रही, उसकी कूल्हे की हड्डी टूट गई, वो चलने-फिरने में अशक्त हो गया। रोज देव दर्शन करता था, उसे दर्शन दुर्लभ हो गए। एक दिन जब मेरा उसके घर में आहार हुआ, रोते हुए उस व्यक्ति ने कहा ‘महाराज ऐसा लगता है कि मैंने लोगों को दर्शन से रोका, आज मेरा दर्शन रुक गया। मैंने लोगों को धर्म से रोका, आज मेरा धर्म छूट गया।’ कोई और भी वजह हो सकती है लेकिन यह तय है कि बाधा देनेवाला बाधा पाता है। 

जब कभी भी हमारे जीवन में हमें ऐसा लगे कि यह बाधायें आ रही है, तो मान के चलो कि हमने कभी किसी के लिए बाधा दी है, मैं किसी के लिए बाधा बना हूँ। इसका एक ही निवारण है-अनुमोदना। हम नहीं कर पाए, जो कर रहा है उसकी अनुमोदना करो, मन से प्रशंसा करो। बहुत अच्छा, चलो हम नहीं कर पाए यह तो किया, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। इस तरह की अनुमोदना करने से भी हमारा बहुत अच्छा काम बनेगा, धीरे-धीरे अन्तराय की कमी होगी।

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